The Digital Teacher : October 2019

टीम्स कार्य को पूर्ण कराने शैक्षिक समन्वयकों की ब्लाक स्तरीय बैठक संपन्न...


TEAMS (Total Education Assessment And Management System) में शिक्षकों का शत प्रतिशत पंजीयन पूर्ण कराने, विद्यालय पंजीयन कराने, प्रोगेशन व कक्षा 1 के सभी बच्चों का पंजीयन के तकनीकी कार्य को ब्लाक में शत प्रतिशत पूर्ण कराने आज आज 22 अक्टूबर 2019 मंगलवार को दोपहर 12 बजे से नवागढ़ बीईओ कार्यालय में सभी शैक्षिक समन्वयकों की ब्लाक स्तरीय बैठक संपन्न हुई जिसमें सभी 18 संकुल केन्द्रों से समन्वयक उपस्थित हुए। टीम्स के तकनीकी प्रभारी राजेश कुमार सूर्यवंशी जी ने बताया कि जिला शिक्षा अधिकारी श्री के.एस. तोमर जी, बीईओ श्री आर.एल. जायसवाल जी, बीआरसीसी श्रीमती रिषीकांता राठौर जी, एबीईओ राजीव नयन शर्मा जी, श्री संजय देवांगन जी, जिला प्रोग्रामर श्री आशुतोष चौबे जी, श्री रमेश कुमार राठौर जी के मार्गदर्शन में टीम्स पर शिक्षकों का पंजीयन, विद्यालयों का पंजीयन विद्यार्थियों का पंजीयन व प्रोगेशन कार्य संपन्न हो रहा है। वर्तमान में नवागढ़ ब्लाक में करीब 40 शिक्षक ही टीम्स में पंजीयन से बचे हुए है जिन्हे 23 अक्टूबर को शिविर लगाकर शत प्रतिशत पूर्ण किया जाना है। उन्होंने संकुलवार छूटे हुए शिक्षकों की जानकारी समन्वयकों की दी तथा कारणों पर चर्चा की गयी। इसके अलावा विद्यार्थी प्रोगेशन, कक्षा 1 में पंजीयन जैसे मुद्दों पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी गयी। टीम्स मास्टर ट्रेनर राजेश कुमार सूर्यवंशी ने शिक्षा सत्र 2019-20 के आंकड़ों के सदंर्भ में जानकारी देते हुए बताया कि नवागढ़ ब्लाक में कुल 18 संकुल केन्द्र धनेली, गौशाला नैला, गोधना, कटौद, खोखरा, नवागढ़, शिवरीनारायण, किरीत, सदर जांजगीर, सेमरा, मिसदा, केरा, अमोदा, सलखन, धुरकोट, सिउड़, अवरीद व सिवनी है। ब्लाक भर में कुल 347 सरकारी विद्यालय है जिनमें से 199 प्राथमिक विद्यालय, 105 पूर्व माध्यमिक विद्यालय, 43 हाई एवं हायर सेकेण्डरी विद्यालय शामिल है। शिक्षकों की संख्या 1637 है जिसमें नियमित शिक्षक 341, पंचायत शिक्षक 159, नगरीय निकाय के 97 व संविलियन के शिक्षकों की संख्या 1040 है। इसी तरह से टीम्स वेबसाइट में आज 22 अक्टूबर की स्थिति में कुल विद्यार्थियों की संख्या 40 हजार 675 है जिसमें से 28 हजार 603 का प्रोगेसन किया जा चुका है नये विद्यार्थियों की पंजीयन की संख्या 7 हजार 997 है। बीईओ श्री जायसवाल ने इस कार्य को पूर्ण गंभीरता के साथ पूर्ण कराने के निर्देश सभी समन्वयकों को दिए। एबीईओ श्री संजय देवांगन ने विभागीय योजनाओं की प्रगति की समीक्षा पर चर्चा की। इस बैठक में बीईओ श्री राधेलाल जायसवाल, एबीईओ श्री संजय देवांगन जी, श्री तरूण कुमार साहू जी, श्री इन्द्रमणि सिंह जी, श्री विनोद पाण्डेय शैक्षिक समन्वयक सदर जांजगीर, श्री बलराम जलतारे शैक्षिक समन्वयक सेमरा, श्री मुबारक खान शैक्षिक समन्वयक सिउड़, श्री अनिल कुमार पाण्डेय शैक्षिक समन्वयक अमोदा, श्री लोमेश राम श्रीवास शैक्षिक समन्वयक मिसदा, श्री लक्ष्मीचंद देवांगन शैक्षिक समन्वयक शिवरीनारायण, श्री यू.के. आजाद शैक्षिक समन्वयक सलखन, श्री हरप्रसाद कुर्रे शैक्षिक समन्वयक सिवनी, श्री शैलेन्द्र तंबोली शैक्षिक समन्वयक खोखरा, श्री रामकिशोर साहू शैक्षिक समन्वयक गोधना, श्री दिनेश्वर प्रसाद शुक्ला शैक्षिक समन्वयक अवरीद, श्री गुरूबचन सिंह जाटवर शैक्षिक समन्वयक केरा, श्री घुरवा राम कर्ष शैक्षिक समन्वयक धुरकोट, श्री गिरधर निराला शैक्षिक समन्वयक नवागढ़, श्री सुरितराम कश्यप शैक्षिक समन्वयक कटौद सहित बीईओ कार्यालय के कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
टीम्स के वेबसाईट में शिक्षक पंजीयन का लिंक-
 https://shiksha.cg.nic.in/teams/admin/teacher/teacherregistration.aspx        
टीम्स के वेबसाईट में स्कूल पंजीयन का लिंक- 
 http://shiksha.cg.nic.in/cgteamsSchool/UserRegistration.aspx         

कैसा हो पढ़ने लिखने के शुरूआती व्यवहार



शिक्षक साथियों सादर नमस्कार,
द टीचर एप्प का यह कोर्स प्राइमरी कक्षाओं में भाषा पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए उपयोगी है। इस कोर्स में बच्चों के पढ़ने-लिखने के शुरुआती व्यवहारों की चर्चा की गई है और इन व्यवहारों को समझकर इनका इस्तेमाल भाषा पढ़ना-लिखना सिखाने में कैसे किया जाए, इस बारे में सुझाव दिए गए हैं। यह कोर्स Emergent Literacy की अवधारणा को आप तक सहजता से पहुँचाएगा और आपके भाषा सिखाने के कौशल को बढ़ाएगा मैंने इस कोर्स को किया और अपने अनुभव जैसा कि मैंने पाया लिखने का प्रयास कर रहा हूं-
साथियों बच्चे पढ़ने लिखने के शुरूआती दौर में किताबों में और दीवारों पर घसीटा मारते है। इस प्रकार का व्यवहार दुनिया का हर बच्चा दिखाता है। हालांकि बड़ों को यह व्यवहार बेमायने लगता है जबकि असल में पढ़ने लिखने में इन व्यवहारों का अहम योगदान होता है जैसे बोलने की शुरूआत बच्चे खुद करते है उसी तरह पढ़ने की धारणा भी खुद बनाते है इस धारणा को इमरजेंट लिटरेसी कहते है। इमरजेंट लिटरेसी के व्यवहारों को हम कुछ इस तरह से समझ सकते है कि कई बार छोटे बच्चे जो अभी बोल भी नहीं पा रहे होते है अखबार या चित्रों वली किताबों को लेकर उत्सुक दिखते है चित्रों की ओर आकर्षित होते है। कम उम्र के बच्चों के हाथों में किताब आ जाये तो वो उन्हे इस्तेमाल करने की कोशिश करते है वा जानते है कि किताब कुछ बता रही है। इसी तरह से काल्पनिक पठन प्रिटेंड रीडिंग एक इमरजेंट लिटरेसी व्यवहार है बच्चे इस किताब से गंभीरता से जुड़ते है हमें इस व्यवहार को बढ़ावा देना चाहिए। इससे बच्चों में शब्द व शब्दों के बीच की जगह, चित्र व शब्द के संबंध का अहसास विकसित होता है इस तरह से ये व्यवहार धीरे से पढ़ने के कौशल में तब्दील हो जाता है। बच्चा किताब देखते रहने उसे बड़ों के साथ बैठकर उलटने पलटने के दौरान यह जानकारी हासिल कर लेता है कि- किताब के सामने का हिस्सा होता है उसे खोलने, पकड़ने का तरीका क्या होता है। एक पन्ना पढ़ने के बाद उसे पलटना, प्रिंट में संदेश छुपा होता है। लिपि की दिशा होती है। हर शब्द के बीच खाली स्थान होता है और शब्दों से वाक्य बनते है। इस तरह की समझ या व्यवहार बच्चों में प्रिंट की अवधारणा को विकसित करते है।
इमरजेंट लिटरेसी-
बच्चे इमरजेंट लिटरेसी का व्यवहार स्कूल जाने से पहले ही करने लगते है जैसे- छपी हुई लिपि को टटोलना, घसीटा लिखकर अपनी बात समझाने की कोशिश करना, पढ़ने का नाटक करना, किताब को इस्तेमाल करने की कोशिश करना इन व्यवहारों को प्रिंट की अवधारणा कहते है किंतु जब इमरजेंट लिटरेसी के व्यवहारों को घरों में ज्यादा प्रोत्साहन नहीं मिलता इस वजह से हमारे कक्षा में आने वाले सभी बच्चों को पढ़ने लिखने में तकलीफ हो सकती है। हमें पालकों की बैठकों के दौरान इन मुद्दों पर बातचीत करनी चाहिए। यदि बच्चे को घर में प्रिंट का माहौल मिलता है तो वे साक्षर संस्कृति से जुड़े हुए होते है पर क्या कक्षा पहली में आने वाले सभी बच्चे साक्षर संस्कृति से जुड़े घरों से आते है?
साक्षर संस्कृति का वातावरण बनाने में शिक्षक की भूमिका -
बतौर शिक्षक हम प्राथमिक कक्षाओं में साक्षर संस्कृति का वातावरण बनाने बच्चों को यह छूट दे कि वह घर की भाषा का उपयोग करें, लोकगीत व कविता जो वो घर से सुना हो सुनाये, समुदाय में प्रचलित कहानियों का प्रयोग करें। बच्चा के घर की भाषा व स्कूल की भाषा में बहुत अंतर होता है। ऐसे में बच्चा बात करने, सवाल पूछने व खुद को अभिव्यक्त करने में असहज महसूस करता है। बोलना और सुनना ही पढ़ने लिखने की नीव होती है। बच्चों को कक्षा में उनकी संस्कृति से जुड़ी ऐसी कहानियां सुनाये जिसमें वे यह अनुमान लगा सके कि आगे क्या होगा? कक्षा में कहानी किताबों को उनकी पहुंच में रखे और बिना किसी दबाव के उन्हे स्वतंत्रता पूर्वक उनका उपयोग करने दे। इस तरह से हम कक्षा में साक्षर संस्कृति का वातावरण बना सकते है। इस पूरी प्रक्रिया में हम केवल अवलोकनकर्ता की भूमिका में रहे। इसके साथ ही जब कक्षा में हम छोटे बच्चों के साथ कहानी सुनाने की गतिविधि करें तो हमें चाहिए कि हम किताब के मुख को दिखाकर चर्चा शुरू करें, किताबों के पन्ने धीरे से पलट, चित्रों को दिखाते चले, शब्दों को उंगली रखकर पढ़े और कहानी का अनुमान लगवाते चले।
मैरी क्ले न्यूजीलैण्ड की प्रसिद्ध शोधकर्ता है उन्होंने अपनी किताब कान्सेप्ट अबाउट प्रिंट में इमरजेंट व्यवहारों के बारे में लिखा है। उन्होंने 24 ऐसे संकल्पनाओं के बारे में लिखा है जिनका इस्तेमाल बच्चे स्कूल जाने के पहले ही पढ़ने व लिखने के लिए करते है। इस तरह से बच्चे यह समझने लगते है कि लिखकर अपनी भावना और सोच को बताया जा सकता है यह बात समझना बच्चों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस तरह से स्पष्ट है कि बोलना सीखने की तरह ही पढ़ने लिखने का प्रयास बच्चे अपने आप ही करने लगते है हमें बस उनके इस प्रयास को प्रोत्साहन देना चाहिए।
प्रसिद्ध भाषाविद चाम्सकी का मानना है कि इंसान में अपने वातावरण में मौजूद किसी भी भाषा को सीखने की क्षमता होती है। मस्तिष्क में किसी भी भाषा को ग्रहण करने की एक युक्ति होती है। इसी तरह से पढ़ने व लिखने की क्षमता भी प्रत्येक इंसान में शुरू से ही होती है। इसे बढ़ावा देने पर या वातावरण तैयार करने पर बच्चे इसे आसानी से सीखने लगते है।
वायगोस्की जो एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक है कहते है कि चित्र एक ग्राफिक भाषा है और चित्र बनाना लिखना सीखने का एक चरण है।




व्यक्तिपरक, प्रतिस्पर्धात्मक और सहकारी अधिगम में श्रेष्ठ अधिगम है सहकारी अधिगम ...



शिक्षक साथियों को मेरा सादर नमन, 
द टीचर एप्प के आनलाईन कोर्स समूह में सीखना-सिखाना को मैंने 100 प्रतिशत अंकों के साथ पूरा कर लिया है। इस कोर्स से मैंने जो अध्ययन किया और मेरी जो समझ बनी है उसे मैं अपने इस ब्लाग में लिखने का प्रयास कर रहा हूं ताकि अधिकतम शिक्षक साथियों तक एक बेहतर संदेश जाये और सीखने सिखाने का अकादमिक माहौल तैयार हो सके। साथियों यह कोर्स हमारी कक्षाओं में सहकारी अधिगम की उपयोगिता पर प्रकाश डालता है और अधिगम की विभिन्न प्रक्रियाओं को जानने समझने का अवसर देती है। मेरा आज का यह अनुभव उन सभी शिक्षक साथियों के लिए लाभदायक हो सकता है जो अपनी कक्षा में समूह कार्य को बेहतर ढंग से करना चाहते है और जो यह मानते है कि समूह में कार्य करने से बच्चों में बेहतर दक्षता आती है और उनकी शैक्षिक गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है।
साथियों बतौर नवाचारी शिक्षक मैं बच्चों को मजे के साथ पढ़ने, पढ़ने की गति में बदलाव लाने और पढ़ाने के तरीकों में विविधता लाने प्रयास करता ही रहता हूं। आमतौर पर पढ़ने पढ़ाने के तीन तरीकों पर कक्षाकक्ष में ज्यादातर काम होता है जिसमें व्यक्तिपरक अधिगम, प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम और सहकारी अधिगम (कोआपरेटिव लर्निंग) शामिल है। एक संवेदनशील शिक्षक के रूप में हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि व्यक्तिपरक अधिगम, प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम और सहकारी अधिगम (कोआपरेटिव लर्निंग) में सहकारी अधिगम का अधिकाधिक प्रयोग कक्षा में सीखने के लिए किया जाना चाहिए और इससे मिले अनुभवों पर अन्य शिक्षक साथियों से भी बातचीत अवश्य होनी चाहिए। व्यक्तिपरक अधिगम की स्थिति में विद्यार्थी यह सोचता है कि वह अकेला ही है और उसकी मदद के लिए कोई नहीं है। प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम की स्थिति में सफलता सभी बच्चों के हिस्से में नहीं आती है जबकि सहकारी अधिगम के मामले में बच्चों की सफलता या असफलता पूरे समूह की सफलता असफलता से जुड़ी होती है या तो सभी एक साथ सफल होंगे या सभी एक साथ असफल होंगे। सहकारी अधिगम में बच्चे सीखने की प्रक्रिया को सकारात्मक नजरिया से लेते है और सीखे गये अवधारणा को लंबे समय तक याद रख सकते है। आज मैं आप सभी से इन तीनों प्रकार के अधिगम पर अपना अनुभव बांट रहा हूं-
प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम -
दौड़ो तुम्हे पहला स्थान प्राप्त करना है, एक विद्यार्थी स्कूल में दाखिला लेने से पहले अपने परिवार के हम उम्र बच्चों से कंपीट करता है और स्कूल आने के बाद अपने सहपाठियों से इस तरह से ताउम्र प्रतिस्पर्धा की भावना मन में बन जाती है। आमतौर पर यह धारणा बन चुकी है कि प्रतिस्पर्धा जीतकर ही या फिर किसी को पीछे छोड़कर ही जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। किंतु हमारी इस तरह की मानसिक प्रवृत्ति का हमारे सहपाठियों पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा कि प्रतियोगिता अच्छी बात नहीं है या हमेशा इसका बुरा प्रभाव ही पड़ता है। कई परिस्थितियों में प्रतियोगिता मजेदार होता है। यह हमारे कामों में उत्साह का संचार करती है और यह हमारे काम को और बेहतर करने के लिए प्रेरित भी करती है। किंतु अनियंत्रित प्रतियोगिता और नंबर वन आने का जुनून या दूसरों को हराने का जुनून हमारी मानसिक शांति को भंग करती है। प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम तब होती है जब बच्चे ग्रेड ए पाने एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते है। इस दशा में विद्यार्थी व्यक्तिगत रूप से परिणामों को पाने का प्रयास करते है जो उसके लिए फायदेमंद हो सकता है लेकिन अन्य विद्यार्थियों के लिए यह नुकसानदेह होता है। ऐसे माहौल में सब बच्चे खुश नहीं रह पाते है। आमतौर पर प्रतिस्पर्धा एक बुरी धारणा नहीं है कुछ स्थितियों में यह भावना हमारे प्रदर्शन को बेहतर बनाता है किंतु प्रतिस्पर्धा में प्रथम आने की अंधी दौड़ हमारी मानसिक शांति को भंग करती है। हमारे विद्यार्थी प्रतिस्पर्धा करना प्रत्यक्ष रूप से सोशल मीडिया और समाज से सीखते है किंतु अप्रत्यक्ष रूप से कक्षा कक्ष में शिक्षक के पढ़ाने व बच्चों से उनके व्यवहार के तरीकों से ही सीखते है। मान लीजिए कि आप कक्षा 5 की छात्रा है और आपकी शिक्षिका आपसे सवाल पूछती है आपको जवाब भी मालूम है जिसे बताने के लिए आप हाथ भी उठाती है लेकिन शिक्षिका किसी अन्य विद्यार्थी से जवाब पूछती है इस दशा में हाथ उपर किये विद्यार्थी यह सोच सकती है कि दूसरा छात्र गलत जवाब दे तो उसे सही जवाब देने का मौका मिल जाये। यहां कमजोर विद्यार्थी और होशियार विद्यार्थी के बीच बेहतर तालमेल नहीं बन पाते। कई मामलों में होशियार विद्यार्थी कमजोर विद्यार्थी का उपहास करते है उन्हे बुद्धू, कुछ नहीं जानने वाला जैसे शब्दों से उनका तिरस्कार तक करने से नहीं चूकते है। इसका परिणाम यह है कि प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम विद्यार्थियों में मित्रता, एक दूसरे को समझने, सहयोग की भावना को बढ़ावा नहीं देते है। बच्चों से ही एक कमरा कक्षा बनता है, कक्षा में बच्चे हस्ते मुस्कुराते अच्छे लगते है। एक शिक्षक के रूप में हमारा लक्ष्य होना चाहिए बच्चों को बेहतर ढंग से स्वस्थ्य माहौल में सिखाना।
व्यक्तिपरक अध्ययन -
व्यक्तिपरक अध्ययन तब होती है जब कोई व्यक्ति सीखने के लक्ष्य को अकेले ही प्राप्त करता है। इस लक्ष्य का अन्य के सीखने से कोई संबंध नहीं होता है। व्यक्ति केवल उन्हीं परिणामों को प्राप्त करने के लिए मेहनत करता है जो उसके लिए फायदेमंद होता है। कक्षाकक्ष के मामले में बात करंे तो हम कह सकते है कि कई बार शिक्षक कक्षा में कुछ गिने चुने बच्चों को लेकर ही कामकाज करना चाहते है। उनका अध्यापन उन्हीं बच्चों को केन्द्र में रखकर किया जाता है। ऐसी दशा में अन्य बच्चे स्वयं को कक्षा में महत्वहीन मानने लगते है। शिक्षक को व्यक्तिपरक अध्ययन से जहां तक हो सके बचना चाहिए उसका उद्देश्य सभी बच्चों को लेकर काम करने वाला ही होना चाहिए।
सहकारी अधिगम- 
बतौर एक शिक्षक हमें अपनी कक्षा में ज्यादा बच्चों की खुशी के लिए काम करना चाहिए। विद्यालय में सिलेबस इतना ज्यादा और विविध है कि इसे समूह में रहकर ही पूरा किया जा सकता है। सहकारी अधिगम से आशय बच्चों को छोटे समूहों में बाटना सही निर्देशों का सहारा देकर समूह में सीखने को प्रेरित करना है। इस दशा में बच्चे ऐसे परिणामों को पाने का प्रयास करते है जो सबके लिए हितकारी हो क्योंकि पूरे समूह का लक्ष्य ही एक होता है। हालांकि कुछ बच्चे साथ मिलकर काम करना चाहते है तो कुछ अकेले ही काम करना चाहते हैं किंतु सहकारी अधिगम ही सही मायने में श्रेष्ठ अधिगम होती है इससे विद्यार्थियों में शैक्षिक सफलता, गहराई से समझना, याद रखने की क्षमता और सकारात्मक नजरिया का विकास होता है। सहकारी अधिगम के मामले में लिंग, जाति, भाषायी विविधता या क्षमताओं के आधार पर बच्चों की विभिन्नता को भी स्वीकार किया जाता है। इससे बच्चों के स्वयं की अवधारणा व आत्मसम्मान की भावना में वृद्धि होती है और बच्चों में सामाजिक कौशल का भी विकास होता है।
सहकारी अधिगम से सहयोगामक अधिगम तक-
जब बच्चे सहकारी अधिगम के तरीकों से सीखते है तब वे न केवल अपने बारे में अपितु दूसरे बच्चे के बारे में भी उनकी बेहतरी के लिए सोचते है। हालांकि हर मामले में यह सही नहीं होगा कि बच्चों से जब समूह में काम लिया जाये तो समूह के सारे बच्चे एक साथ मिलकर काम करे हो सकता है कि समूह का कोई एक विद्यार्थी अन्य को हतोत्साहित करें हो सकता है कि समूह का सारा काम एक या दो विद्यार्थी करें और बाकी सब आराम करें और अच्छे नंबर का श्रेय पूरे समूह को मिले और एक स्थिति यह भी हो सकती है कि समूह में रहकर भी सब अपना-अपना काम करें और किसी को भी एक दूसरे के काम के बारे में कोई जानकारी ही न हो और शिक्षक उनके काम को एकत्र करके उसे समूह कार्य का नाम दे दे। एक साथ मिलकर समूह में काम करना वास्तव में एक सामाजिक कौशल होता है जिसे बच्चों के साथ हम शिक्षकों को भी सीखने की महती आवश्यकता है। सहयोगात्मक अधिगम का आधार यह है कि ज्ञान का सृजन लोगों द्वारा अनुभवों को बांटकर और सक्रिय भूमिका निभाकर किया जा सकता है। एक कक्षा में बातचीत कैसी हो या बातचीत का ढांचा क्या हो समूह का निर्माण कैसा हो यह सब शिक्षक ही तय करता है। समूह में हर सदस्य के योगदान का आदर करना और उनकी क्षमता का सम्मान करना शिक्षक के साथ विद्यार्थी को भी आना चाहिए। हम शिक्षक है और हमारा काम है पढ़ाना किंतु इसके लिए भी एक योजना की जरूरत होती है।
कैसी हो कक्षा में समूह की गतिविधि-
हम कक्षा में जो गतिविधि करवाने जा रहे है उसके उद्देश्य के बारे में बच्चों से चर्चा होनी चाहिए इसके बाद कक्षा को गतिविधि के लिए तैयार अर्थात व्यवस्थित करना चाहिए। समूह में प्रत्येक बच्चों की क्या भूमिका होगी इस पर भी अवश्य ही बातचीत होनी चाहिए। कौन सा विद्यार्थी किस समूह का हिस्सा होगा और उसकी क्षमता के अनुसार उसे क्या जिम्मेदारी पूरी करनी होगी यह शिक्षक तय करें। इसके बाद गतिविधि के नियमों के बारे में बताये जिसके बाद गतिविधि शुरू की जाये। इस बीच शिक्षक बच्चों की क्रियाओं पर निगरानी रखे यदि शिक्षक को लगे कि किसी बच्चे को उसकी मदद की जरूरत है तो वो उस समूह तक जाकर मदद या मार्गदर्शन दे अंत में शिक्षक उनके कार्यों का मूल्यांकन करें कि इस गतिविधि से बच्चों ने व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से क्या सीखा है?
बच्चों को कक्षा में बातचीत के पर्याप्त मौके दे-
आमतौर पर ऐसा होता है कि कक्षा में हमारे सवाल पूछने के दौरान कई बार कुछ बच्चे खुद को छुपाने की कोशिश करते है ताकि शिक्षक उनसे सवाल न पूछ ले। बच्चे आपसी बातचीत के जरिये भी सीखते है। जब बच्चों की बातचीत को उसके सहपाठी या शिक्षक से सहमति मिलती है तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। एक शिक्षक के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को बातचीत करने और उनके विचार बांटने के अवसर दे। मेरा अनुभव है कि कमजोर से कमजोर बच्चा जो अकेले में सोचता है उसे वह अपने साथियों से शेयर करता है। हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि क्या हमारे कक्षा में सभी बच्चे बातचीत कर पाते है और अपना विचार रख पाते है। बच्चों से किये गये कार्यों का प्रदर्शन उनसे करवाना चाहिए इससे उनके आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।
सोचना फिर जोड़ी बनाना और समूह के साथ अपने विचार बांटना-
जब बच्चे अपने विचार जोड़े में एक दूसरे के साथ बांटते है उन्हे अपने सहपाठियों के अनोखे विचार का पता चलता है ऐसे स्थिति में उनकी समझ और पुख्ता होती है। इसे थिंक पेयर शेयर का नाम दिया गया है बच्चा सोचता है फिर उस सोच को समूह के साथ साझा करता है। इससे बच्चे के पूर्व ज्ञान का पता चल जाता है। कक्षा में सवाल पूछने और उस सवाल का जवाब गिने चुने बच्चों से प्राप्त करने के बजाय हम थिंक पेयर शेयर का उपयोग कर सकते है। इसमें बच्चे अपने विचार न केवल बोलकर बल्कि पढ़कर, लिखकर या चित्र बनाकर प्रस्तुत करने की छूट देने की जरूरत होगी। शिक्षक चाहे तो चर्चा बोर्ड भी बना सकते है जिसमें बच्चे अपने विचारों को लिखकर चिपका सकते है ये उन बच्चों के लिए फायदेमंद हो सकता है जो बातचीत कम करते है किंतु विचार को चित्र या लिखित में साझा करने में ज्यादा रूचि लेते है।
सहकारी अधिगम का बेहतर तरीका -थिंक पेयर शेयर
हम अपने विद्यार्थी जीवन पर बात करें तो कई बार हमें शिक्षक की गैर मौजूदगी में शिक्षक के रूप में कक्षा में पढ़ाने का अवसर जरूर मिला है और कक्षा में शिक्षक बनकर पढ़ाने से जो आत्मविश्वास बढ़ा वह हमें आगे अच्छे विद्यार्थी बननेे के लिए मददगार साबित हुई। अब हम एक शिक्षक है और हमें अपने बच्चों को ऐसा अवसर जरूर दिया जाना चाहिए।
सहकारी अधिगम की सकारात्मक तकनीक - जिगसा गतिविधि
वर्ष 1970 के आसपास मनोवैज्ञानिक इलियट अरंसन ने जिगसा तकनीक की शुरूआत की थी। जिगसा गतिविधि से आशय समूह के सारे बच्चों में ज्ञान की एक विशेष कड़ी में दक्षता हासिल करने से है और फिर समूह के सारे बच्चे मिलकर अपनी-अपनी कड़ी को जोड़ते हुए समूह के उद्देश्यों को पूर्ण करने से है। जिस तरह से जिगसा में किसी चित्र के सारे टूकड़े जब आपस में व्यवस्थित हो जाये तो वह एक संपूर्ण चित्र बनता है इसी तरह से सारे विद्यार्थी अपने हिस्से की असाइनमेंट को पूरा कर ले और मिलकर संपूर्ण असाइनमेंट की प्रस्तुति दे। इसमें हर विद्यार्थी जिगसा का एक टूकड़ा जैसा है सबके मिलने पर ही अपेक्षित परिणाम आता है और सबका बराबर योगदान होता है। कक्षा में इस गतिविधि का सबसे बढ़िया बात यह है कि इसमें सभी बच्चों को अपने समूह का नेतृत्व करने का बराबर मौका मिलता है और वे अपने समूह की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में होते है। हालांकि यह रोचक पद्धति प्राथमिक कक्षाओं के बजाय माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं के मामले में ज्यादा कारगर हो सकते है।























विज्ञान में अवधारणा की बेहतर समझ के लिए प्रभावशाली गतिविधि है करके सीखना ...


शिक्षक साथियों सादर नमस्कार,
आज मैं करके सीखे विज्ञान के आनलाईन कोर्स के अपने अनुभवों को आपसे शेयर करने जा रहा हूं। करके सीखे विज्ञान के इस आनलाइन कोर्स में हैण्ड्स आन तकनीक, गतिविधि के माध्यम से अवधारणा तक पहुंचना, प्रयोग कार्य, प्रयोग कार्य से पहले सीखने के उद्देश्य तय करना, अवलोकन करना, परिकल्पना बनाना, निष्कर्ष निकालना, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अनुभव आदि पर विस्तार पूर्वक बातचीत की गयी है कोर्स से मैंने जैसा सीखा समझा उसे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हू- 
हैण्डस् आन क्या है-
विज्ञान बच्चों में सीखने, प्रयोग करने और तार्किक बनने का कौशल उत्पन्न करता है। विज्ञान ने बाकी विषयों की तरह मनुष्य की तरक्की में एक बड़ा योगदान दिया है। विज्ञान पढ़ाते समय करके सीखना, प्रयोग करना बच्चों को खोजने देना जैसे क्रियाओं पर बल दिया जाता है। हम सभी भी प्रशिक्षणों में, संकुल बैठकों में या अकादमिक चर्चाओं के दौरान हैण्ड्स आन साइंस के बारे में सुनते है। हैण्ड्स आन को हम करके सीखना भी कहते है। हम सबने अनुभव किया है कि जिसे हम करके देखते है उसे ज्यादा गहराई से समझते है। जिस तरह से हम पृथ्वी के पर्यावरण में प्रदूषण फैला रहे है तो एक दिन ऐसी स्थिति आ जायेगी कि हमें चांद पर ही रहना पड़ जायेगा। लेकिन क्या हम चांद पर रहेंगे तो वहां भी दिन और रात होंगी। धरती में दिन और रात तब होता है जब सूर्य के मध्य में चंद्रमा आ जाता है और पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती रहती है पर अब हमें यह खोजना होगा कि क्या चंद्रमा भी अपनी धुरी पर घुमती रहती होगी? हमें चांद का केवल एक हिस्सा ही दिखाई देता है दूसरा हिस्सा कभी नहीं दिखता इसे हम डार्क साइड कहते है। कल्पना करें चांद हमारे धरती से बंधा हुआ है और निरंतर चक्कर लगा रहा है जिसका एक हिस्सा ही हम देख पा रहे है ठीक इसी तरह अंतरिक्ष यान भी हमारे पृथ्वी के चक्कर लगा रहे है। चांद भी अपनी धुरी पर ही घूम रहा है चांद को धरती के चारों ओर एक चक्कर लगाने और अपनी धुरी पर पूरा एक चक्कर घुमने में 28 दिन का ही समय लगता है अर्थात दोनों काम एक साथ 28 दिन में पूरा होता है जिसे सिंक्रोनस मोशन कहा जाता है। चांद की धुरी 1.6 डिग्री टेढ़ी है जबकि धरती की धुरी 23.5 डिग्री टेढ़ी है यही वजह है कि हम इसका केवल एक हिस्सा ही देख पाते है। इस लिहाज से हम कह सकते है कि चंद्रमा धरती का आधा चक्कर 14 दिन में पूरा करती है तो चंद्रमा पर भी दिन और रात होते है मतलब 14 दिन की रात और 14 दिन की दिन चंद्रमा में होता है।
एक पूर्णिमा की रात जब मैं चांद को देखकर यह कल्पना कर रहा था कि क्या होता यदि हमारा घर चांद पर होता। हमने बचपन में यह कहानी भी सुनी है कि चांद पर एक बूढ़ी अम्मा रहती है जो चरखा चलाते रहती है।
इस तरह से हम हैण्ड्स आन पर अपनी समझ पुख्ता करेंगे, अब हम ऐसे दो कक्षाओं के उदाहरण पर बात करेंगे जहां एक कक्षा अ में करके सीखो आधारित विज्ञान शिक्षण कराया जा रहा है। एक कक्षा जहां गुब्बारे देकर वायुदाब की गतिविधि करायी जा रही है इसमें प्रयोग करके बच्चे जान रहे है कि गुब्बारा में हवा भरने के बाद उसे हाथों से दबाने पर उसका आकार बदलता है क्योंकि वायु स्थान घेरती है और दबाये जाने पर पिचकती है। इधर एक अन्य कक्षा ब में इसे पालीथीन की थैली, स्ट्रा मंगाकर पालीथीन के उपर किताबें रखकर उसमें स्ट्रा के माध्यम से हवा भरा गया जिससे किताबे उपर उठती है। इस तरह से दोनों कक्षाओं में करके सीखों आधारित गतिविधि हो रही है किंतु कक्षा ब में अवधारणा ज्यादा तय है क्योंकि बच्चे उसे करके सीख रहे है और अवधारणा तक स्वयं पहुंच रहे है। हैण्ड्स आन की गतिविधि से तात्पर्य कक्षा में बच्चों से ऐसे प्रयोग के साथ अध्यापन कराना है जिससे बच्चों में अवधारणा स्पष्ट हो सके। इसमें हम शिक्षकों को अवधारणा को पहले से बताने की जरूरत नहीं होती बल्कि विद्यार्थी गतिविधि करके उस अवधारणा तक स्वयं पहुंचते है। हम किसी अवधारणा को तब बेहतर समझ पाते है जब उससे जुड़ी कोई गतिविधि करते है। किंतु क्या हम यह तय कर पाते है कि बच्चे इस गतिविधि से अवधारणा तक पहुंच पाते है। बच्चे तब ज्यादा सीखते है जब वे अपने आसपास की चीजों का अवलोकन करते है अपने अवधारणा के अवलोकन करने की योजना बनाते है और गतिविधि करके अवधारणा से जुड़ी अपनी समझ बनाते है। बच्चों में अपने विज्ञान के प्रति तभी समझ बनने लगती है जब वे यह समझ बनाने लगते है कि वे अपनी दुनिया के बारे में सीख सकते है। अपने अनुभवों के माध्यम से अपने आसपास हो रही घटनाओं को अपने शब्दों में समझा सकते है। जिस तरह से तैरने के लिए पानी में जाना जरूरी होता है उसी तरह विज्ञान सीखने के लिए उसे करके सीखना जरूरी होता है इसे महज किताब से पढ़कर समझना पर्याप्त नहीं होगा आमतौर पर हमारी कक्षाओं में इसे सिद्धांतों तक ही सीमित कर दिया जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि हम विज्ञान को प्रयोगशाला में ही सीखा सकते है बल्कि हम अपने परिवेश में आसानी से उपलब्ध होने वाली वस्तुओं के जरिये भी बहुत सी अवधारणाओं को सीखाने में उनकी मदद कर सकते है। एक मोमबत्ती और एक कांच की गिलास जो कि आसानी से उपलब्ध हो जाती है दहन की अवधारणा को समझाया जा सकता है कि आक्सीजन के बिना दहन संभव नहीं। इस तरह के कई अवधारणा जो हमारे विज्ञान पाठ्यक्रम का हिस्सा है।
एनसीईआरटी के टीचिंग आफ साइंस के पोजीशन पेपर के अनुसार- उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चे ज्यादा से ज्यादा जितने प्रयोग करें, उतना ही विज्ञान की अवधारणा समझना आसान और प्रभावशाली होता है। उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों को परिचित अनुभवों की मदद से विज्ञान के सरल सिद्धांतों को सीखने के लिए लगे रहना चाहिए ऐसे प्रयोग या गतिविधियां कक्षा का हिस्सा होना चाहिए।
आइये अब हम प्रयोग कार्य को और गहराई से समझने का प्रयास करते है। प्रयोग का आयोजन करना उसके निष्कर्षाें को रिकार्ड करना विज्ञान की शिक्षा में प्रयोग कार्य के रूप में माना जाता है। प्रयोग कार्य से बच्चों में विज्ञान के प्रति रूचि और जिज्ञासा को बढ़ावा मिलता है यह बच्चों में कई तरह से कौशलों को विकसित करने में मदद भी करता है। अच्छे स्तर के प्रयोग कार्य बच्चों के वैज्ञानिक स्तर को मजबूत करता है। हर प्रयोग कार्य के पहले हमें सीखने के उद्देश्य भी तय करने होते है कि किसी भी प्रयोग कार्य के बाद बच्चों को क्या-क्या समझ में आ जाना चाहिए। प्रयोग कार्य तभी सफल माना जायेगा जब बच्चे उससे सीखे हुए अवधारणा को अपने दैनिक जीवन में प्रयोग कर पाये। इसे हम सीखने के प्रतिफल या लर्निंग आउटकम भी कहते है।
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अनुभव- डायरेक्ट व इनडायरेक्ट एक्सपीरियंस
क्या केवल प्रयोग कार्य को ही विज्ञान में हैण्ड्स आन का अनुभव माना जा सकता है। प्रत्यक्ष अनुभव ऐसी गतिविधियां है जिसमें बच्चों को खुद कुछ करके सीखने का अवसर दिया जाता है जैसे प्रकाश का सीधी रेखा में गमन करने वाला प्रयोग, विद्युत सर्किट बनाकर बल्ब जलाने की गतिविधि आदि। प्रत्यक्ष अनुभव देखने, सुनने, चखने, स्पर्श करने आदि पर आधारित है। जबकि अफ्रिका के जानवरों के बारे में जानने के लिए भारतीय जानवरों के बारे में जानकारी लेना या हमारे पूर्वजों के कंकाल तंत्र को जानने के लिए मानव कंकाल तंत्र का अध्ययन करना अप्रत्यक्ष अनुभव है। इसमें हम दूसरों के प्रत्यक्ष अनुभव का उपयोग करते है। हम दूसरों के अनुभवों से बहुत कुछ सीखते है जैसे पढ़ना, चित्र देखना, भाषण व चर्चाएं सुनना आदि। सौरमंडल या ज्वालामुखी का माडल बनाना अपने आप में एक प्रत्यक्ष अनुभव है लेकिन चूंकि हम सौरमण्डल व ज्वालामुखी का प्रत्यक्ष अनुभव तो नहीं कर सकते ऐसे में माडल के रूप में हम इनका अप्रत्यक्ष अनुभव करते है।
हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक-
हैण्ड्स आन तकनीक से तात्पर्य है कि बच्चे किसी भी अवधारणा के बारे में करके सीखते है। इस तकनीक में बच्चे सक्रिय रूप से गतिविधि का हिस्सा बनते है। पांचवीं कक्षा में संघनन समझाने के लिए कक्षा में प्रयोग करती है। एक कांच के गिलास में सामान्य ताप का पानी डालती है और बच्चों से बातचीत करती है बच्चे बताते है कि गिलास का बाहरी सतह सूखा है और गिलास के आर पार देखा जा सकता है। इसके बाद दूसरे गिलास पर बर्फ के टूकड़े डालकर बच्चों से बातचीत करती है इस बार बच्चों के जवाब अलग होती है। शिक्षिका बताती है कि बर्फ डालने से गिलास के अंदर और बाहर सतह का तापमान कम हो जाता है जिससे बाहर हवा में मौजूद जलवाष्प पानी के बूंदों के रूप में बाहर सतह पर जमा हो जाता है और सतह गीली हो जाती है। किंतु इस प्रयोग के बाद संघनन के कुछ उदाहरण पूछने पर बच्चे जवाब नहीं दे पाते क्योंकि संघनन पर यह गतिविधि पर्याप्त नहीं है। बच्चे अवधारणा के बारे में कुछ करके ही सीखे ऐसा जरूरी नहीं होता है। इसके लिए जरूरी है कि बच्चा अवधारणा से जुड़ी गतिविधि करने के दौरान अपने दिमाग को भी सक्रिय रखे। कक्षा 6 में उष्मा की अवधारणा समझाने के लिए शिक्षिका लोहा, लकड़ी, प्लास्टिक और बर्फ का टूकड़ा कक्षा में लाती है। बर्फ को लोहा, लकड़ी और प्लास्टिक के उपर रखकर यह पूछा गया कि कौन सा बर्फ जल्दी पिघलेगा बच्चों ने अलग-अलग अनुमान लगाया और प्रयोग के बाद स्पष्ट हुआ कि बर्फ पहले लोहे में उसके बाद लकड़ी और प्लास्टिक में पिघलती है। प्रयोग के बाद शिक्षिका अवधारणा पर बात करते हुए बताती है कि लोहा उष्मा का सुचालक है जिससे लोहे की सतह से बर्फ तक उष्मा जल्दी पहुंची और वह जल्दी पिघल गयी जबकि लकड़ी व प्लास्टिक उष्मा के कुचालक है जिससे बर्फ तक गर्मी देर से पहुंची है। यह गतिविधि हैण्ड्स आन माइंड्स आन का उदाहरण है जिसमें हमारी सभी इन्द्रियां सक्रिय रहती है।  
हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक के फायदे-
बच्चे जब स्वयं गतिविधि करके सीखते है तो उनमें कई कौशल विकसित होते है बच्चे इसमें अवलोकन करते है, जानकारी एकत्र करते है, परिकल्पना बनाते है उन्हे जांचते है और निष्कर्ष भी निकालते है। यही फायदे है हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक के, इसे और बेहतर जानने के लिए हम कक्षा 8 में घर्षण के पाठ पर बात करेंगे जहां शिक्षिका ने बच्चों से कंचा को एक बार दरी में और एक बार खाली फर्श में लुढ़काकर प्रयोग करवायें। इस गतिविधि में बच्चों ने स्वयं परिकल्पना बनाया, गतिविधि कर परिकल्पना को जांचा, अवलोकन किया, दोनों स्थिति में कंचा कितना दूर गया दूरी नापकर निष्कर्ष निकाला कि दरी पर अधिक घर्षण है जिससे कंचा कम दूरी तक जाकर रूक गया जबकि फर्श में घर्षण कम है इसलिए कंचा अधिक दूरी तक गया। हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक के फायदे यही है कि इसमें संवाद कौशल मजबूत होता है, बच्चे समूह में काम करना सीखते है। शिक्षक प्रभावशाली ढंग से कक्षा अध्यापन करवा पाते है। सीखते समय जितनी ज्यादा इंद्रिया सक्रिय होती है उतना ज्यादा दिमाग सक्रिय होता है और बच्चे पढ़ायी गयी अवधारणा को बेहतर ढंग से समझ पाते है।














प्लास्टिक कचरा मुक्त भारत पर डिजिटल विद्यालय ने गांव में निकाली जागरूकता रैली ...

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 जयंती 2 अक्टूबर से पूरे भारत को प्लास्टिक कचरा मुक्त बनाने देशव्यापी अभियान आरंभ होने जा रही है। इसी कड़ी में 1 अक्टूबर मंगलवार को शास. पूर्व माध्य. शाला नवापारा (अमोदा) में प्लास्टिक कचरा मुक्त विद्यालय व गांव के निर्माण के लिए जन जागरूकता अभियान चलायी गयी। इस दौरान विद्यालय प्रागंण में एक ही संकल्प हमारा प्लास्टिक हटाना लक्ष्य हमारा के साथ शपथ ली गयी। इस हेतु 30 सितंबर को सैकड़ों की संख्या में अखबारी कागज से बैग का निर्माण किया गया और जागरूकता रैली के दौरान स्कूली बच्चों ने पालीथिन त्यागने के लिए स्लोगन लिखे तख्तियां हाथों में थामे कर चलते हुए हर घर के दरवाजे पर पहुंचकर लोगों से पालीथिन एकत्र किये और उसके बदले कागज से तैयार थैले भेंटकर प्लास्टिक को हमेशा के लिए त्यागने की अपील की। अभियान के तहत गांव के गणमान्य नागरिकों के साथ गांव भ्रमण कर हर घर से पालीथिन कचरा संग्रह किया गया। प्लास्टिक त्यागने व कागज के थैले अपनाने के लिए लोगों से अपील करते हुए उन्हे विद्यालय में बच्चों द्वारा तैयार कागज के थैले भेंट किये गये। जागरूकता रैली उपरांत डिजिटल कक्ष में प्लास्टिक कचरा मुक्त भारत विषय पर निबंध, वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया और समुदाय के लोगों के साथ प्लास्टिक से पर्यावरण व मानव जीवन को होने वाले नुकसान पर आधारित डाक्यूमेंटरी फिल्म देखी गयी। कार्यक्रम के संयोजक राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने बताया कि हमारा विद्यालय पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध शैक्षणिक नवाचारी गतिविधियों का केन्द्र जिले का प्रथम सरकारी डिजिटल विद्यालय है जहां विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ देश व समाज हित में समर्पित रहने की गतिविधि करायी जाती है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि पूरे देश भर में पालीथिन प्रदूषण की समस्या में दिनों दिन बढ़ोतरी होती जा रही है। पालीथिन के कारण पानी से लेकर हवा और भूमि सभी प्रदूषित हो रहे हैं। हम सबको पालीथिन त्यागने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और व्यक्तिगत रूप से भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी यह धरती सुरक्षित रह सकती है। स्पष्ट रूप से हमें इस दिशा में और अधिक गंभीरता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में खाने पीने के लिए उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक व थर्माकोल से बनी प्लेटों को भी त्यागने व उसकी जगह स्थानीय स्तर पर तैयार होने वाले पत्तों से बने दोने और पत्तलों का उपयोग करने की अपील की। प्रधान पाठक कन्हैया लाल मरावी ने कहा कि हम सब प्लास्टिक से बनी हुई ऐसी वस्तुओं के इस्तेमाल से बचें जिन्हें एक बार इस्तेमाल में लिए जाने के बाद फेंकना पड़े और प्लास्टिक की जगह कपड़े, कागज और जुट से बने थैलों का इस्तेमाल करें। उच्च वर्ग शिक्षक हीरालाल कर्ष ने कहा कि जब भी आप कोई वस्तु खरीदने जाए तो फिर से कपड़े का थैला अपने साथ लेकर जाएं जिससे कि आपको प्लास्टिक की थैलियों में सामान नहीं लाना पड़े। संतोष श्रीवास ने अपने संबोधन में कहा कि प्लास्टिक का पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतुओं के साथ साथ अन्य जीवन के लिए जरूरी घटकों पर भी इसका बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ रहा है हमें इसे त्यागने का संकल्प करना चाहिए।
प्लास्टिक कचरा- खतरे की घंटी 
दशकों पहले लोगों की सुविधा के लिये प्लास्टिक का आविष्कार किया गया लेकिन धीरे-धीरे यह अब पर्यावरण के लिये ही नासूर बन गया है। प्लास्टिक और पालीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। हाल के दिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के पानी में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक के केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव नजर आने लगे हैं। इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है। 
कैसे करें प्लास्टिक समाप्त करने की आदतों का विकास-
प्लास्टिक से बनी हुई ऐसी वस्तुओं के इस्तेमाल से बचें जिन्हें एक बार इस्तेमाल में लिए जाने के बाद फेंकना पड़े और प्लास्टिक की जगह कपड़े, कागज और जुट से बने थैलों का इस्तेमाल करें। जब भी आप कोई वस्तु खरीदने जाए तो फिर से कपड़े का थैला अपने साथ लेकर जाएं जिससे कि आपको प्लास्टिक की थैलियों में सामान नहीं लाना पड़े। दुकानदार से सामान खरीदते वक्त उसे कहें कि कपड़े या कागज से बनी थैलों में ही समान दे। इसी तरह से खाने की वस्तुओं के लिए स्टील या फिर मिट्टी के बर्तनों को प्राथमिकता दें। स्कूलों में विद्यार्थियों को प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के बारे में निबंध लिखवाने चाहिए इस पर वाद-विवाद प्रतियोगिता होनी चाहिए जिससे कि विद्यार्थियों को पता चल सके की प्लास्टिक हमारे जीवन के लिए कितना हानिकारक है जिससे कि वह बचपन से ही कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल करने लगेंगे।
प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रभाव- 
प्लास्टिक का पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतुओं के साथ साथ अन्य जीवन के लिए जरूरी घटकों पर भी इसका बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक एक धीमे जहर का काम कर रहा है यह मानव के जीवन में इस तरह से घुल चुका है कि मानव ना चाहते हुए भी इसका उपयोग कर रहा है। प्लास्टिक से ऐसे जहरीले पदार्थ निकलते है कि वह धीरे-धीरे मानव स्वास्थ्य को खराब करते है। प्लास्टिक को बनाने के लिए कई जहरीले केमिकल काम में लिए जाते है जिसके कारण यह जहां भी पड़ा रहता है धीरे-धीरे वहां पर बीमारियों और प्रदूषण को जन्म देता है। मानव द्वारा प्लास्टिक का उपयोग अपनी सहूलियत के लिए किया जाता है। एक प्लास्टिक का बैग है अपने वजन से कई गुना ज्यादा वजन उठा सकता है और इसको कहीं पर भी ले जाया जाना आसान होता है। मानव ने जिस प्रकार तरक्की की है मानव उतना ही आलसी होता जा रहा है। जिसके कारण वह कहीं पर भी जब भी वस्तु खरीदने जाता है तो वह घर से कपड़े, कागज या जुट का थैला नहीं लेकर जाता है। जिसके कारण सामान बेचने वाले विक्रेता मजबूरी में पालिथीन की बेगों में लोगों को समान देते है जिस कारण प्लास्टिक का उपयोग बहुत मात्रा में बढ़ गया है। और आजकल तो फास्ट फूड का जमाना है तो लोग रास्ते में चलते ही खाना पसंद कर रहे हैं और यह खाना भी उन्हें प्लास्टिक की थेलियों में ही दिया जाता है। आजकल हर वस्तु ऐसे ही लिपटी हुई आती है।
विद्यालय या व्यक्ति नहीं हर नागरिक का हो दायित्व
कार्यक्रम के संयोजक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने कहा कि प्लास्टिक एक ऐसी वस्तु है जो सड़ती गलती नहीं है व सैकड़ों वर्ष तक नष्ट नहीं होती। समुद्र में हर चीज कुछ समय बाद गल कर नष्ट हो जाती है, किंतु प्लास्टिक एक ऐसी चीज है जो समुद्र में भी सैकड़ों वर्ष तक भी नष्ट नहीं होती। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह हमारे पर्यावरण के लिए कितनी अधिक घातक है। ऐसे में इसके त्याग करने का यह महत्वपूर्ण कार्य किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं, बल्कि सभी का सामूहिक कर्तव्य है। यदि हमें अपने पर्यावरण को संरक्षित रखना है, जलवायु को बचाना है, भावी पीढ़ी को सुरक्षित भविष्य देना है तो इस दिशा में संपूर्ण इच्छाशक्ति के साथ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी।
        उत्साह के साथ ग्रामीणों ने जागरूकता रैली में निभायी सहभागिता
पालीथिन जागरूकता रैली को लेकर ग्राम पंचायत सरपंच प्रतिनिधि श्री दिलीप कुमार यादव सहित शाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्रीमती सावित्री बाई चौहान, श्री शांति लाल साहू, श्री रंगलाल, श्री फिरत, श्री जीवन लाल, श्री गौरीशंकर, श्रीमती अनिता बाई, श्रीमती रूपा बाई, श्रीमती मालती बाई, श्री डुग्गूदास, श्री पुरूषोत्तम साहू, श्री रामरतन, श्रीमती लक्ष्मीन चौहान, श्रीमती साधमती, श्री कृष्ण कुमार यादव, श्री फगनी बाई, श्री बहोरन साहू, श्रीमती संतोषी, श्रीमती गणेशी बाई, श्रीमती कांति बाई, श्री मंगतू, श्रीमती इतवारा बाई, श्री रवि, श्री लतेल, श्री अमृत, श्री मीलू साहू, श्री विजय यादव सहित विद्यालय के स्टाफ प्रधान पाठक श्री कन्हैया लाल मरावी, श्री हीरालाल कर्ष, श्री संतोष कुमार श्रीवास, श्री साधराम यादव, श्री राजेश कुमार सूर्यवंशी, श्री अनंदराम सिदार, श्री ज्ञानसिंह कंवर सहित शाला प्रबंधन समिति व समस्त विद्यार्थियों का सराहनीय योगदान रहा।
बाल केबिनेट के सदस्यों ने की जागरूकता रैली की अगुवानी-
बाल केबिनेट के प्रधानमंत्री राज यादव, उप प्रधानमंत्री कुमारी पूजा यादव, खेल मंत्री करन कुमार, स्वास्थ्य खाद्य एवं स्वच्छता मंत्री कुमारी अंजली, शिक्षामंत्री कुमारी मानसी यादव, वित्त मंत्री कुमारी पूजा कंवर, कानून मंत्री कुमारी नागेश्वरी साहू, उद्योग मंत्री कुमारी नंदनी यादव व पर्यावरण मंत्री कुमारी मंगली केंवट सहित विद्यार्थियों हेमलता, विशेष्वरी, प्रीति, हीना, कामिया, अनिषा, संतोषी, ज्योति, ज्योति यादव, पुष्पा, छठकुमारी, अंजली, दिप्ती, सानिया, प्रभा, ममता, कार्तिक, शरद, विनय, संदीप, विजय, किशन, अनुज, महेन्द्र, रिषी, चन्द्रेश, कमल, राकेश, आरती, देवेश, दीपक, जय, करन, कृतिका, खुशी, लक्ष्मीन, नंदनी, प्रियांशु, राजकुमार, सरोजनी, सविता, सुखसागर, सुमित, सूरज, सोनिया, शंकरलाल, शिवानी, उमेन्द्र, विजय, शंकर, भारती, अभिषेक, अजय, अंकुर, भुवनेश्वरी, गणेश, गरिमा, जयप्रकाश, किरन, प्रदीप, रोशन, रोशनी, शनि, उमा, विजय ने जागरूकता रैली की अगुवानी की।








































डिजिटल स्कूल में दीक्षांत समारोह के साथ परीक्षाफल की घोषणा, बच्चों को बांटे गये अंकसूची...

नवागढ़ ब्लाक के शास.पूर्व माध्य.शाला नवापारा (अमोदा) में शिक्षा सत्र के अंतिम दिवस आज 29 अप्रैल शनिवार को प्रगति पत्रक वितरण सह दीक्षांत समार...