The Digital Teacher : व्यक्तिपरक, प्रतिस्पर्धात्मक और सहकारी अधिगम में श्रेष्ठ अधिगम है सहकारी अधिगम ...

व्यक्तिपरक, प्रतिस्पर्धात्मक और सहकारी अधिगम में श्रेष्ठ अधिगम है सहकारी अधिगम ...



शिक्षक साथियों को मेरा सादर नमन, 
द टीचर एप्प के आनलाईन कोर्स समूह में सीखना-सिखाना को मैंने 100 प्रतिशत अंकों के साथ पूरा कर लिया है। इस कोर्स से मैंने जो अध्ययन किया और मेरी जो समझ बनी है उसे मैं अपने इस ब्लाग में लिखने का प्रयास कर रहा हूं ताकि अधिकतम शिक्षक साथियों तक एक बेहतर संदेश जाये और सीखने सिखाने का अकादमिक माहौल तैयार हो सके। साथियों यह कोर्स हमारी कक्षाओं में सहकारी अधिगम की उपयोगिता पर प्रकाश डालता है और अधिगम की विभिन्न प्रक्रियाओं को जानने समझने का अवसर देती है। मेरा आज का यह अनुभव उन सभी शिक्षक साथियों के लिए लाभदायक हो सकता है जो अपनी कक्षा में समूह कार्य को बेहतर ढंग से करना चाहते है और जो यह मानते है कि समूह में कार्य करने से बच्चों में बेहतर दक्षता आती है और उनकी शैक्षिक गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है।
साथियों बतौर नवाचारी शिक्षक मैं बच्चों को मजे के साथ पढ़ने, पढ़ने की गति में बदलाव लाने और पढ़ाने के तरीकों में विविधता लाने प्रयास करता ही रहता हूं। आमतौर पर पढ़ने पढ़ाने के तीन तरीकों पर कक्षाकक्ष में ज्यादातर काम होता है जिसमें व्यक्तिपरक अधिगम, प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम और सहकारी अधिगम (कोआपरेटिव लर्निंग) शामिल है। एक संवेदनशील शिक्षक के रूप में हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि व्यक्तिपरक अधिगम, प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम और सहकारी अधिगम (कोआपरेटिव लर्निंग) में सहकारी अधिगम का अधिकाधिक प्रयोग कक्षा में सीखने के लिए किया जाना चाहिए और इससे मिले अनुभवों पर अन्य शिक्षक साथियों से भी बातचीत अवश्य होनी चाहिए। व्यक्तिपरक अधिगम की स्थिति में विद्यार्थी यह सोचता है कि वह अकेला ही है और उसकी मदद के लिए कोई नहीं है। प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम की स्थिति में सफलता सभी बच्चों के हिस्से में नहीं आती है जबकि सहकारी अधिगम के मामले में बच्चों की सफलता या असफलता पूरे समूह की सफलता असफलता से जुड़ी होती है या तो सभी एक साथ सफल होंगे या सभी एक साथ असफल होंगे। सहकारी अधिगम में बच्चे सीखने की प्रक्रिया को सकारात्मक नजरिया से लेते है और सीखे गये अवधारणा को लंबे समय तक याद रख सकते है। आज मैं आप सभी से इन तीनों प्रकार के अधिगम पर अपना अनुभव बांट रहा हूं-
प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम -
दौड़ो तुम्हे पहला स्थान प्राप्त करना है, एक विद्यार्थी स्कूल में दाखिला लेने से पहले अपने परिवार के हम उम्र बच्चों से कंपीट करता है और स्कूल आने के बाद अपने सहपाठियों से इस तरह से ताउम्र प्रतिस्पर्धा की भावना मन में बन जाती है। आमतौर पर यह धारणा बन चुकी है कि प्रतिस्पर्धा जीतकर ही या फिर किसी को पीछे छोड़कर ही जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। किंतु हमारी इस तरह की मानसिक प्रवृत्ति का हमारे सहपाठियों पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा कि प्रतियोगिता अच्छी बात नहीं है या हमेशा इसका बुरा प्रभाव ही पड़ता है। कई परिस्थितियों में प्रतियोगिता मजेदार होता है। यह हमारे कामों में उत्साह का संचार करती है और यह हमारे काम को और बेहतर करने के लिए प्रेरित भी करती है। किंतु अनियंत्रित प्रतियोगिता और नंबर वन आने का जुनून या दूसरों को हराने का जुनून हमारी मानसिक शांति को भंग करती है। प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम तब होती है जब बच्चे ग्रेड ए पाने एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते है। इस दशा में विद्यार्थी व्यक्तिगत रूप से परिणामों को पाने का प्रयास करते है जो उसके लिए फायदेमंद हो सकता है लेकिन अन्य विद्यार्थियों के लिए यह नुकसानदेह होता है। ऐसे माहौल में सब बच्चे खुश नहीं रह पाते है। आमतौर पर प्रतिस्पर्धा एक बुरी धारणा नहीं है कुछ स्थितियों में यह भावना हमारे प्रदर्शन को बेहतर बनाता है किंतु प्रतिस्पर्धा में प्रथम आने की अंधी दौड़ हमारी मानसिक शांति को भंग करती है। हमारे विद्यार्थी प्रतिस्पर्धा करना प्रत्यक्ष रूप से सोशल मीडिया और समाज से सीखते है किंतु अप्रत्यक्ष रूप से कक्षा कक्ष में शिक्षक के पढ़ाने व बच्चों से उनके व्यवहार के तरीकों से ही सीखते है। मान लीजिए कि आप कक्षा 5 की छात्रा है और आपकी शिक्षिका आपसे सवाल पूछती है आपको जवाब भी मालूम है जिसे बताने के लिए आप हाथ भी उठाती है लेकिन शिक्षिका किसी अन्य विद्यार्थी से जवाब पूछती है इस दशा में हाथ उपर किये विद्यार्थी यह सोच सकती है कि दूसरा छात्र गलत जवाब दे तो उसे सही जवाब देने का मौका मिल जाये। यहां कमजोर विद्यार्थी और होशियार विद्यार्थी के बीच बेहतर तालमेल नहीं बन पाते। कई मामलों में होशियार विद्यार्थी कमजोर विद्यार्थी का उपहास करते है उन्हे बुद्धू, कुछ नहीं जानने वाला जैसे शब्दों से उनका तिरस्कार तक करने से नहीं चूकते है। इसका परिणाम यह है कि प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम विद्यार्थियों में मित्रता, एक दूसरे को समझने, सहयोग की भावना को बढ़ावा नहीं देते है। बच्चों से ही एक कमरा कक्षा बनता है, कक्षा में बच्चे हस्ते मुस्कुराते अच्छे लगते है। एक शिक्षक के रूप में हमारा लक्ष्य होना चाहिए बच्चों को बेहतर ढंग से स्वस्थ्य माहौल में सिखाना।
व्यक्तिपरक अध्ययन -
व्यक्तिपरक अध्ययन तब होती है जब कोई व्यक्ति सीखने के लक्ष्य को अकेले ही प्राप्त करता है। इस लक्ष्य का अन्य के सीखने से कोई संबंध नहीं होता है। व्यक्ति केवल उन्हीं परिणामों को प्राप्त करने के लिए मेहनत करता है जो उसके लिए फायदेमंद होता है। कक्षाकक्ष के मामले में बात करंे तो हम कह सकते है कि कई बार शिक्षक कक्षा में कुछ गिने चुने बच्चों को लेकर ही कामकाज करना चाहते है। उनका अध्यापन उन्हीं बच्चों को केन्द्र में रखकर किया जाता है। ऐसी दशा में अन्य बच्चे स्वयं को कक्षा में महत्वहीन मानने लगते है। शिक्षक को व्यक्तिपरक अध्ययन से जहां तक हो सके बचना चाहिए उसका उद्देश्य सभी बच्चों को लेकर काम करने वाला ही होना चाहिए।
सहकारी अधिगम- 
बतौर एक शिक्षक हमें अपनी कक्षा में ज्यादा बच्चों की खुशी के लिए काम करना चाहिए। विद्यालय में सिलेबस इतना ज्यादा और विविध है कि इसे समूह में रहकर ही पूरा किया जा सकता है। सहकारी अधिगम से आशय बच्चों को छोटे समूहों में बाटना सही निर्देशों का सहारा देकर समूह में सीखने को प्रेरित करना है। इस दशा में बच्चे ऐसे परिणामों को पाने का प्रयास करते है जो सबके लिए हितकारी हो क्योंकि पूरे समूह का लक्ष्य ही एक होता है। हालांकि कुछ बच्चे साथ मिलकर काम करना चाहते है तो कुछ अकेले ही काम करना चाहते हैं किंतु सहकारी अधिगम ही सही मायने में श्रेष्ठ अधिगम होती है इससे विद्यार्थियों में शैक्षिक सफलता, गहराई से समझना, याद रखने की क्षमता और सकारात्मक नजरिया का विकास होता है। सहकारी अधिगम के मामले में लिंग, जाति, भाषायी विविधता या क्षमताओं के आधार पर बच्चों की विभिन्नता को भी स्वीकार किया जाता है। इससे बच्चों के स्वयं की अवधारणा व आत्मसम्मान की भावना में वृद्धि होती है और बच्चों में सामाजिक कौशल का भी विकास होता है।
सहकारी अधिगम से सहयोगामक अधिगम तक-
जब बच्चे सहकारी अधिगम के तरीकों से सीखते है तब वे न केवल अपने बारे में अपितु दूसरे बच्चे के बारे में भी उनकी बेहतरी के लिए सोचते है। हालांकि हर मामले में यह सही नहीं होगा कि बच्चों से जब समूह में काम लिया जाये तो समूह के सारे बच्चे एक साथ मिलकर काम करे हो सकता है कि समूह का कोई एक विद्यार्थी अन्य को हतोत्साहित करें हो सकता है कि समूह का सारा काम एक या दो विद्यार्थी करें और बाकी सब आराम करें और अच्छे नंबर का श्रेय पूरे समूह को मिले और एक स्थिति यह भी हो सकती है कि समूह में रहकर भी सब अपना-अपना काम करें और किसी को भी एक दूसरे के काम के बारे में कोई जानकारी ही न हो और शिक्षक उनके काम को एकत्र करके उसे समूह कार्य का नाम दे दे। एक साथ मिलकर समूह में काम करना वास्तव में एक सामाजिक कौशल होता है जिसे बच्चों के साथ हम शिक्षकों को भी सीखने की महती आवश्यकता है। सहयोगात्मक अधिगम का आधार यह है कि ज्ञान का सृजन लोगों द्वारा अनुभवों को बांटकर और सक्रिय भूमिका निभाकर किया जा सकता है। एक कक्षा में बातचीत कैसी हो या बातचीत का ढांचा क्या हो समूह का निर्माण कैसा हो यह सब शिक्षक ही तय करता है। समूह में हर सदस्य के योगदान का आदर करना और उनकी क्षमता का सम्मान करना शिक्षक के साथ विद्यार्थी को भी आना चाहिए। हम शिक्षक है और हमारा काम है पढ़ाना किंतु इसके लिए भी एक योजना की जरूरत होती है।
कैसी हो कक्षा में समूह की गतिविधि-
हम कक्षा में जो गतिविधि करवाने जा रहे है उसके उद्देश्य के बारे में बच्चों से चर्चा होनी चाहिए इसके बाद कक्षा को गतिविधि के लिए तैयार अर्थात व्यवस्थित करना चाहिए। समूह में प्रत्येक बच्चों की क्या भूमिका होगी इस पर भी अवश्य ही बातचीत होनी चाहिए। कौन सा विद्यार्थी किस समूह का हिस्सा होगा और उसकी क्षमता के अनुसार उसे क्या जिम्मेदारी पूरी करनी होगी यह शिक्षक तय करें। इसके बाद गतिविधि के नियमों के बारे में बताये जिसके बाद गतिविधि शुरू की जाये। इस बीच शिक्षक बच्चों की क्रियाओं पर निगरानी रखे यदि शिक्षक को लगे कि किसी बच्चे को उसकी मदद की जरूरत है तो वो उस समूह तक जाकर मदद या मार्गदर्शन दे अंत में शिक्षक उनके कार्यों का मूल्यांकन करें कि इस गतिविधि से बच्चों ने व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से क्या सीखा है?
बच्चों को कक्षा में बातचीत के पर्याप्त मौके दे-
आमतौर पर ऐसा होता है कि कक्षा में हमारे सवाल पूछने के दौरान कई बार कुछ बच्चे खुद को छुपाने की कोशिश करते है ताकि शिक्षक उनसे सवाल न पूछ ले। बच्चे आपसी बातचीत के जरिये भी सीखते है। जब बच्चों की बातचीत को उसके सहपाठी या शिक्षक से सहमति मिलती है तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। एक शिक्षक के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को बातचीत करने और उनके विचार बांटने के अवसर दे। मेरा अनुभव है कि कमजोर से कमजोर बच्चा जो अकेले में सोचता है उसे वह अपने साथियों से शेयर करता है। हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि क्या हमारे कक्षा में सभी बच्चे बातचीत कर पाते है और अपना विचार रख पाते है। बच्चों से किये गये कार्यों का प्रदर्शन उनसे करवाना चाहिए इससे उनके आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।
सोचना फिर जोड़ी बनाना और समूह के साथ अपने विचार बांटना-
जब बच्चे अपने विचार जोड़े में एक दूसरे के साथ बांटते है उन्हे अपने सहपाठियों के अनोखे विचार का पता चलता है ऐसे स्थिति में उनकी समझ और पुख्ता होती है। इसे थिंक पेयर शेयर का नाम दिया गया है बच्चा सोचता है फिर उस सोच को समूह के साथ साझा करता है। इससे बच्चे के पूर्व ज्ञान का पता चल जाता है। कक्षा में सवाल पूछने और उस सवाल का जवाब गिने चुने बच्चों से प्राप्त करने के बजाय हम थिंक पेयर शेयर का उपयोग कर सकते है। इसमें बच्चे अपने विचार न केवल बोलकर बल्कि पढ़कर, लिखकर या चित्र बनाकर प्रस्तुत करने की छूट देने की जरूरत होगी। शिक्षक चाहे तो चर्चा बोर्ड भी बना सकते है जिसमें बच्चे अपने विचारों को लिखकर चिपका सकते है ये उन बच्चों के लिए फायदेमंद हो सकता है जो बातचीत कम करते है किंतु विचार को चित्र या लिखित में साझा करने में ज्यादा रूचि लेते है।
सहकारी अधिगम का बेहतर तरीका -थिंक पेयर शेयर
हम अपने विद्यार्थी जीवन पर बात करें तो कई बार हमें शिक्षक की गैर मौजूदगी में शिक्षक के रूप में कक्षा में पढ़ाने का अवसर जरूर मिला है और कक्षा में शिक्षक बनकर पढ़ाने से जो आत्मविश्वास बढ़ा वह हमें आगे अच्छे विद्यार्थी बननेे के लिए मददगार साबित हुई। अब हम एक शिक्षक है और हमें अपने बच्चों को ऐसा अवसर जरूर दिया जाना चाहिए।
सहकारी अधिगम की सकारात्मक तकनीक - जिगसा गतिविधि
वर्ष 1970 के आसपास मनोवैज्ञानिक इलियट अरंसन ने जिगसा तकनीक की शुरूआत की थी। जिगसा गतिविधि से आशय समूह के सारे बच्चों में ज्ञान की एक विशेष कड़ी में दक्षता हासिल करने से है और फिर समूह के सारे बच्चे मिलकर अपनी-अपनी कड़ी को जोड़ते हुए समूह के उद्देश्यों को पूर्ण करने से है। जिस तरह से जिगसा में किसी चित्र के सारे टूकड़े जब आपस में व्यवस्थित हो जाये तो वह एक संपूर्ण चित्र बनता है इसी तरह से सारे विद्यार्थी अपने हिस्से की असाइनमेंट को पूरा कर ले और मिलकर संपूर्ण असाइनमेंट की प्रस्तुति दे। इसमें हर विद्यार्थी जिगसा का एक टूकड़ा जैसा है सबके मिलने पर ही अपेक्षित परिणाम आता है और सबका बराबर योगदान होता है। कक्षा में इस गतिविधि का सबसे बढ़िया बात यह है कि इसमें सभी बच्चों को अपने समूह का नेतृत्व करने का बराबर मौका मिलता है और वे अपने समूह की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में होते है। हालांकि यह रोचक पद्धति प्राथमिक कक्षाओं के बजाय माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं के मामले में ज्यादा कारगर हो सकते है।























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