The Digital Teacher : September 2019

बच्चों की अभिव्यक्ति की आजादी है स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देना ...


लिखने का मुख्य उद्देश्य अभिव्यक्ति है, चित्रकारी लिखित अभिव्यक्ति या लिखने का पहला रूप है। चित्रकारी बच्चों का अपने को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण चरण है। स्वतंत्र लेखन के लिए बच्चों को पहले स्वतंत्र विचार बनने के लिए प्रोत्साहन देना जरूरी है। जब तक बच्चे सही शब्दों को नहीं पहचान लेते है तब तक वे स्वयं इजाद किये हुए शब्द और भाषा का इस्तेमाल करते रहते है। घसीटे और चित्रकारी की तरह बच्चों द्वारा खोजे गये शब्द लिखने के विकास में एक महत्वूर्ण पड़ाव होता है। स्वतंत्र लेखन को कैसे प्रोत्साहन दे मुद्दे पर यह अनुभव मैंने द टीचर एप्प के आनलाईन कोर्स से जो सीखा है अपने अनुभवों लिखित रूप में आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं। यह कोर्स प्राथमिक कक्षाओं में भाषा पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए उपयोगी है। जिसमें बच्चों की स्वतंत्र रूप से खुद लिखने की क्षमता को सहारा और बढ़ावा देने सम्बन्धी मुद्दों और सुझावों पर बातचीत की गयी है।
स्वयं को अभिव्यक्त करने का महत्व-
मैं कई बार सोचता हूं कि काश ऐसा होता कि लोग बिना बोले आपस में विचारों का आदान प्रदान कर लेते मस्तिष्क से मस्तिष्क, ऐसा मौन बातचीत हम अपने दोस्तों और परिजनों से कर पाते तो कितना अच्छा होता तब तो हमें लिखने की जरूरत न पड़ती। शिक्षक साथियों प्राचीनकाल से ही किस्से, कहानियां, लोकगीत व कविताएं मुह जुबानी ही सुनायी जा रही है। किंतु इस मामले में एक समस्या यह आती है कि समय के साथ कई कहानियां गायब हो गयी तो वही हर व्यक्ति के बताने के तरीके के साथ कहानियां बदलती चली गयी। हमारी सबसे प्रमुख कहानियां रामायण, महाभारत, अन्य कई धार्मिक ग्रंथ शुरूआत में मौखिक ही रहे फिर किसी ने कागज पर लिखने का किसी ने न सोचा होता तो ये गुम ही हो जाते।

लिखने की शुरूआत-
लिखने की शुरूआत को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि सबसे पहले लिखना कैसे और क्यो शुरू किया गया होगा? हमारे पूर्वज हमें कहानी बताते थे किंतु भाषायी विविधता कई बार सुनने समझने में दिक्कत करती है। तब आज की तरह कोई सोशल मीडिया नहीं था। कई बार अलग-अलग संस्कृति व समुदाय के लोग भाषायी विविधता के कारण आपस में बात नहीं कर पाते थे। किंतु दीवारों पर की गयी चित्रकारी की मदद से वे अन्य समुदाय की भावना को जरूर समझ लेते थे और उनके समक्ष अपनी बात रख पाते थे। कुल मिलाकर आरंभ में चित्रों की मदद से ही बातचीत की जाती थी। इस तरह से हम कह सकते है कि धरती पर लिखावट का सबसे पहला रूप चित्रकारी ही था। समय के साथ मुश्किल चित्र आसान होते चले गये और कुछ चित्र हमारी वर्णमाला का हिस्सा भी बन गये। 


दुनिया की सभी लिखित प्रणाली इंसानों से जानकारी बाटने के दौरान ही शुरू हुई। लिखने का मुख्य उद्देश्य अपने विचारांे, अहसासों व योजनाओं को अभिव्यक्त करना रहा है। इंसानों की मूल जरूरत है अपने आप को अभिव्यक्त करना और लिखना एक ऐसा जरिया है जिससे इंसान अपने आप को समय व जगह से परे अभिव्यक्त कर पाता है। स्कूलों में लिखना सिखाना मूल कौशल है जिस पर काफी जोर दिया जाता है। हम बच्चों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने के लिए सक्षम बनाना चाहते है जिसके लिए लिखना सिखाना जरूरी होता है। लिखना केवल भाषा की कक्षा तक ही सीमित नहीं होती है। हमारे विद्यार्थी स्कूल का अधिकांश समय लिखने की कला विकसित करने में व्यतीत करते है। लेकिन फिर भी हम यह दावा नहीं कर सकते है कि हम बच्चों को एक अच्छा लेखक बना रहे है? क्योंकि लिखना सीखना अलग बात है और आत्मविश्वास से भरे स्वतंत्र लेखक जिसमें लेखक का भाव व्यक्त हो।
बच्चों के लिए चित्रकारी लिखने की शुरूआत मानी जाती है। जब बच्चे अपने माहौल में प्रिंट को और बड़ों को लिखते हुए देखते है। तो वे ऐसा करने का प्रयास करते है अपने चित्रकारी के माध्यम से वो अपनी बात दुनिया से साझा करते है। चित्रकारी बच्चों के बातचीत और अभिव्यक्त करने की तरफ एक महत्वपूर्ण चरण है। इसलिए प्राथमिक कक्षाओं के मामलों में लिखने के पहले चित्रकारी को प्रोत्साहन दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। किंतु यह खेदजनक है कि बच्चे जब बड़े होने लगते है तब वे क्या चित्र बनाये क्या अभिव्यक्ति दे यह अन्य लोग तय करने लगते है। कक्षा में भी शिक्षक तय करते है कि बच्चों को क्या चित्र बनाना है। जब विद्यार्थी अपने मन से चित्र बनाता है तो कई बार शिक्षक से डाट खानी पड़ती है कि मैंने जो कहा वो नहीं बनाया। आमतौर पर किताबों में दिये गये चित्रों को ही बनाने के लिए निर्देशित किया जाता है। इस तरह के माहौल में बच्चा यह मानने लगता है कि वह जो भी चित्र बनायेगा उसमें बड़ों की मंजूरी मिलना जरूरी है और चित्र उसके अभिव्यक्ति का जरिया नहीं है। ऐसे में हम सब उनकी अभिव्यक्ति की स्तंत्रता को समाप्त करने की दिशा में काम कर रहे होते है। बच्चों को खड़ी रेखा, सीधी रेखा, टेड़ी रेखा आदि बनाने का अभ्यास बार बार करायया जाता है ताकि वे आगे जाकर अक्षर लिखने में दक्ष हो सके इसके बाद शुरू होती है अक्षरों को बनाने की और बच्चे यही से शुरू करते है कापी करने की प्रवृत्ति का। हम सभी शिक्षक बच्चों के साथ लगभग यही गतिविधि करते है किंतु यह सब समय के साथ गतिविधि मशीनी सा लगता है न कोई अर्थ न कोई मजा। यदि इसी तरह की गतिविधि जारी रहे तो बच्चे केवल कापी ही करते रहेंगे और उन्हे लिखना महज एक काम लगने लगेगा और वे बिना किसी सवाल के बड़ों की बात मानकर केवल और केवल लिखना ही जारी रखेंगे। ऐसी दृनिया जहां बड़े ही सबकुछ जानते है बच्चों के लिखने का उद्देश्य ही गुम हो जाता है। और लिखना उनके लिए अभिव्यक्ति का जरिया नहीं रह जाता है। यही वजह है कि जबहम कभी बच्चों को कुछ स्वयं से लिखने को कहते है वो नहीं लिख पाते या फिर शिक्षक की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते है। हमें लिखने को हम बच्चों के लेख में त्रुटियां ढूंढते है जबकि हमें अर्थ भी देखने की जरूरत है। बच्चे खुद को अभिव्यक्त करने क लिए नये शब्दों का इस्तेमाल करते रहते है कईबार वे खुद शब्द बना लेतते है जिनका अर्थ हमें पता नहीं होता क्योंकि वे अर्थहीन होते है। क्योंकि हमारी भाषा के नियमों के अनुरूप नहीं होता है। बोलने के विपरित लिखना एक धीमी प्रक्रिया है एसमें सोचने और शब्दों का चयन करने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इससे वर्तनी की, शब्दों की, वाक्यांशों की खोज होगी। बच्चे के लिखने के विकास में एक महतवपूर्ण पड़ाव है उनके द्वारा इजाद किये गये अर्थहीन शब्द जिसे शिक्षक बाद में बदलकर अर्थयुक्त बना दे। शिक्षक के रूप में हमारा दायित्व केवल ऐसा वातावरण निर्माण करने की है जिसमें बच्चा स्वतंत्र लेखन के लिए प्रोत्साहित हो सके।



कक्षा में लिखना-
कई बार हम कक्षा में बच्चों को लिखने का काम देते है लेकिन उसे निर्धारित प्रारूप में लिखने के निर्देश देते है या फिर लिखने का एक खांका या माडल देते है जिसके बाद बच्चे की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति समाप्त हो जाती है और वे केवल कापी करना शुरू कर देते है। इस तरह का तरीका बच्चों के स्वतंत्र लेखन को हतोत्साहित करने वाला होता है हमें ऐसे तरीको से बचने की जरूरत है। आमतौर पर कक्षा में शिक्षक द्वारा बच्चों को अर्थ लिखने, प्रश्नों के उत्तर लिखने, वाक्य बनाने, खाली स्थान भरने, निबंध लिखने जैसे काम दिये जाते है। हम जो निबंध का काम बच्चों को देते है उनके विषय परंपरागत होते है जो कि निर्धारित पाठ्यक्रम का हिस्सा होते है। इसमें बच्चों की अभिव्यक्ति कौशल का जरा भी विकास नहीं होता है। इनमें बच्चों के मन की आवाज गायब होती है बल्कि ये निबंध जानकारी का एक टूकड़ा मात्र ही होता है जिसमें बच्चा अपनी अभिव्यक्ति नहीं दे पाता है। इनकी भाषा बच्चों की दैनिक जीवन की भाषा से मेल नहीं खाती बल्कि गाइड बुक व व्याकरण किताबों की भाषा से मेल खाती है। इस तरह का लेख करवाना बच्चों को हमेशा के लिए बड़ों पर या किताबों पर निर्भर रहने का आदी बना देता है। एक शिक्षक के रूप में हम पाठ्यक्रम और परीक्षाओं की जरूरतों के मुताबिक ही पढ़ाना लिखाना सही मानते है। साथियों हम बच्चों को अपना विषय चुनने दे और खुलकर लिखने दे पहले उन्हे लिखने दे व्याकरण, वर्तनी आदि की चिंता न करें। बच्चों में अभिव्यक्ति और प्रवाह के विकास की शुरूआत उनके अपने अनुभवों से होती है। एक सच्चा लेख वह होता है जिसमें लेखक के विचार, भाव प्रतिबिंबित हो, बच्चों को कुछ खास विषयों पर लेख लिखने के लिए नहीं बल्कि लिखित अभिव्यक्ति के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
स्वतंत्र लेखन के लिए सक्षम वातावरण का निर्माण-
एक शिक्षक के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कक्षा अपने स्कूल के सभी बच्चों को अच्छी तरह से जाने और इसके लिए लिखना एक बढ़िया जरिया हो सकता है। इसके लिए कक्षा में एक पत्रिका का निर्माण किया जाना चाहिए। मेेरे विद्यालय में यह शाला दर्पण के रूप में जारी है। इसमें बच्चे खुलकर अपनी अभिव्यक्ति को उकेरते है। इसमें बच्चे और लिखने के लिए प्रेरित होते है क्योंकि और लिखना बेहतर लिखने के लिए पहला कदम होता है। बच्चों की अभिव्यक्ति इस बात से भी प्रभावित होती है कि कक्षा में उन्हे कैसा वातावरण मिल रहा है। शिक्षक बच्चों के हर लेखन से पहले यदि उन्हे मार्गदर्शन करने लगे कि उन्हे क्या ओर कैसे लिखना है तो यह बच्चों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने जैसा कृत्य होगा। रिस्क लेने की हिम्मत करना स्वतंत्र लेखन का पहला चरण होता है लेकिन इसके लिए उसे स्कूल में शिक्षक व अन्य बच्चों से अपनेपन का माहौल मिलना भी जरूरी है अन्यथा वह अपनी बात साझा नहीं कर पायेगा। हम अपने घर परिवार अपने मित्रों के साथ खुलकर बातचीत करते है जबकि एक नये जगह में या विद्यालय में सहपाठियों के साथ बहुत कम बात करते है सोच समझकर बात करते है। ऐसे में उनकी सृजनात्मकता का ह्वास होता है। आमतौर पर सभी कक्षाओं में शिक्षकों द्वारा आंकलन और अंकों पर ही जोर दिया जाता है। लेकिन हमको इनसे परे जाकर भी उनके लिए काम करने की जरूरत है पाठ के अंत में बच्चों को अलग-अलग तरह के रूचिपूर्ण असाइनमेंट देकर हम उनकी स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन दे सकते है जिसमें अंक देने का कोई प्रावधान न हो बल्कि बेहतर उत्तरदायित्व के लिए फीडबैक दे। विद्यालय स्तर पर पत्रिका का निर्माण बच्चों को जानने का और लेखन को प्रोत्साहन देने का एक अच्छा जरिया हो सकता है।
स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देने वाली गतिविधि-
स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए हम कक्षा में बच्चों को उनके अनुभवों पर लिखने, किसी चित्र पर कहानी तैयार करने अथवा किसी आपबीती घटना, मेला, बाजार, गांव का उत्सव पर लिखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते है। बच्चों को अपने बारे में बात करना बहुत रोचक लगता है वे कहा गये, किनसे मिले क्या बात हुई आदि उनके लेख के विषय हो सकते है। बच्चों को अपने बारे में, अपने अनुभवों, अपने परिवार, दोस्तों आदिक के बारे में लिखना पसंद आता है। दिमागी मंथन किसी भी विषय पर जानकारी एकत्र करने का एक अच्छा तरीका है। दिमागी मंथन की मदद से लिखने के विषयों को बढ़ाया जा सकता है।




रचनात्मक प्रतिक्रिया देना-
बच्चे जब पहली बार स्कूल आना शुरू करते है तब उनके लिए सब कुछ नया होता है। बच्चे लेखन के लिए किताब, बड़ों या शिक्षक पर ही निर्भर होते है। हम सब बच्चों को सही करने के लिए लगे रहते है यह करों, यह मत करों लेकिन हमारी यह टोकाटाकी कई बार बच्चों को बेहतर करने से रोकती है।  बच्चा घर में अनौपचारिक रूप से बहुत कुछ सीख चुका होता है किंतु स्कूल में दाखिला लेने के साथ ही वह औपचारिक रूप से सीखने की शुरूआत करता है। अब तक बच्चा भाषा की लिखित रूप से वाकिफ नहीं होता है कई बार स्कूल और घर की भाषा में तालमेल नहीं बैठ पाता जिससे भी उसके सीखने की क्षमता पर विपरित असर पड़ता है। स्वतंत्र लेखन के लिए प्रोत्साहित करना हो तो उनके सोचने की प्रक्रिया को महत्व देना होगा। लेकिन एक शिक्षक के रूप में बच्चों के लेख को सही करना भी होता है। लेकिन ऐसा करने के बेहतर तरीके हो सकते है गलतिया सुधारने के चक्कर में बच्चे कही लिखना ही न बंद कर दे। शिक्षक रोजाना 30 से 40 कापियां रोज ही चेक करते है ऐसे में व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक विद्यार्थी की कापी पर फीडबैक देना एक कठिन काम हो जाता है। बच्चों द्वारा लिखी बातें हमारे विचारों से अलग हो सकती है लेकिन वो उनके लिए अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण होती है बच्चों की कापियों को जाचने के दौरान हमें सी-सी-आर का सहारा लेना चाहिए-
सी-सराहना  COMMEND (लेख की प्रशंसा करना)
सी-समीक्षा  COMMENT (बेहतर बनाने के लिए समीक्षा करना)
सी-सुझाव  RECOMMEND (आगे बढ़ाने के लिए सुझाव)
यह प्रक्रिया लिखने के उद्देश्य को काफी रूचिपूर्ण बना सकती है। अनुसंधान बताते है कि बच्चों की कापियों में की जानी वाली गलतियों को बाद में भी ठीक किया जा सकता है। लाल निशान से काटने के चिन्हों को लेकर कई बार बच्चे लिखने के लिए रूचि नहीं ले पाते या फिर हतोत्साहित हो जाते है। सीसीआर पद्धति से हम धीरे से बच्चों को उनकी गलतियों की ओर ध्यान दिला सकते है और इससे वे हतोत्साहित भी नहीं होते है बल्कि वे समय के साथ अपनी गलतियां खुद ही पहचानना और ठीक करना शुरू कर देते है। आधुनिक अनुसंधान भी यही कहते है कि जब बच्चे लिखने में रूचि लेना शुरू कर देते है तब वे अपनी गलतियों को न केवल पहचानते है बल्कि उन्हे सुधारने में भी लग जाते है भले ही वे सारी गलतियां ठीक न कर पाये लेकिन स्वतंत्र लेखन की प्रक्रिया की शुरूआत जरूर हो जाती है और हमारा यही तो मुख्य उद्देश्य होता है। इसे हम प्रक्रिया दृष्टिकोण का नाम दे सकते है।





समाज सेवी संस्था के मंच से नवाचारी शिक्षक राजेश सूर्यवंशी को मिला सम्मान


रामबती लाखनसाव फाउण्डेशन सरहर (बाराद्वार) द्वारा 22 सितंबर 2019 रविवार को जिला स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें जिले भर के करीब 70 शिक्षक-शिक्षिकाओं का सम्मान किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सत्यनारायण राठौर (आई.ए.एस.) रायपुर रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला शिक्षा अधिकारी जांजगीर-चांपा श्रीके.एस. तोमर, बीईओ बम्हनीडीह श्री कमल कपूर बंजारे व प्रांताध्यक्ष शास. शिक्षक संघ छ.ग. श्री विरेन्द्र कुमार दुबे उपस्थित रहे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता डा.चंद्रिका साहू व डा. अमित साहू (एम.बी.बी.एस.) ने किया। सम्मान समारोह में राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी का सम्मान किया गया। मंच से जिला शिक्षा अधिकारी श्री तोमर ने आईएएस अधिकारी सहित अतिथियों को शिक्षक के नवाचारी गतिविधियों तथा उपलब्धियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ऐसे शिक्षक किसी परिचय के मोहताज नहीं है। इन्होंने अपने कार्यों से जिले की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया है। इस संबंध में शिक्षक श्री सूर्यवंशी ने बताया कि रामबती लाखनसाव फाउण्डेशन सरहर बाराद्वार के आमंत्रण पर शिक्षक सम्मान समारोह में शामिल होने का अवसर मिला। गांव से निकलकर आई.ए.एस. अधिकारी बने सत्यनारायण राठौर और डाक्टर दंपत्ति डा. चंद्रिका साहू व डा. अमिता साहू गांव के शिक्षा व स्वास्थ्य को बेहतर बनाने तथा बेरोजगारी दूर करने जैसे समस्याओं पर जिस समर्पण भाव से काम कर रहे है वह अत्यंत सराहनीय है और ऐसे सेवाभावी लोगों के हाथों सम्मानित होना मुझे और भी गौरवान्वित कर रहा है। उन्होंने प्राचार्य पी.एस.पाटिये सहित समस्त स्टाफ व फाउण्डेशन के सदस्यों का आभार व्यक्त किया है। 




हिंदी दिवस पर डिजिटल विद्यालय में काव्यपाठ, वाद-विवाद व पोस्टर स्पर्धा संपन्न..




जांजगीर-चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक के शास. पूर्व मा.शाला नवापारा (अमोदा) में आज 14 सितंबर 2019 शनिवार को शिक्षकों व विद्यार्थियों ने मिलकर हिंदी दिवस मनाया। इस मौके शिक्षकों के मार्गदर्शन में बाल केबिनेट के प्रधानमंत्री राज यादव, खेल मंत्री करन कुमार, स्वास्थ्य खाद्य एवं स्वच्छता मंत्री कुमारी अंजली, शिक्षामंत्री कुमारी मानसी यादव, वित्त मंत्री कुमारी पूजा कंवर, कानून मंत्री कुमारी नागेश्वरी साहू, उद्योग मंत्री कुमारी नंदनी यादव व पर्यावरण मंत्री कुमारी मंगली केंवट सहित विद्यार्थियों ने काव्यपाठ, वाद-विवाद व पोस्टर स्पर्धा के जरिये हिंदी दिवस की महत्ता को समझा और पत्र पत्रिकाओं, अखबारों से एकत्र किये गये कविताओं का वाचन किया, हिंदी की महत्ता पर वाद विवाद किया गया तथा पोस्टर में हिंदी से जुड़े स्लोगन बच्चों ने तैयार किये।










गौरतलब हो कि बच्चों में हिंदी भाषा के प्रति आत्मीयता व उपयोगिता जागृत करने यह आयोजन किया गया। जहां डिजिटल कक्ष में विडियों प्रदर्शन के माध्यम से हिंदी के महत्व व इतिहास पर बच्चों को जानकारी देते हुए कार्यक्रम के संयोजक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने कहा कि आजादी के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधानसभा में एकमत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया। राष्टभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 से पूरे भारत में इसे 14 सितंबर से मनाया जाने लगा। हिंदी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। इसकी लिपि अत्यंत समृद्ध है हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। प्रधान पाठक कन्हैया लाल मरावी ने कहा कि हिंदी हमारी मातृभाषा है हम सभी को बढ़ चढ़कर हिंदी को अपनाना चाहिए, उसका व्यापक प्रचार-प्रसार करना चाहिए।  छात्रा पूजा यादव ने कविता के माध्यम से कहा कि हिंदी है भारत के एकता और अखण्डता की पहचान, हिंदी है भारत की जान और शान। कुमारी मानसी ने कहा कि हमें माता पिता का शब्द संबोधन भी हिंदी में ही करनी चाहिए न कि पाश्चात्य संस्कृति के शब्द माम-डैड का प्रयोग करनी चाहिए। उच्च वर्ग शिक्षक संतोष श्रीवास ने कहा कि हिंदी भाषा अनेकता में एकता को स्थापित करने की सूत्रधार है हमें इसे निरंतर प्रयोग करते हुए शिक्षा ग्रहण करना है। उच्च वर्ग शिक्षक हीरालाल कर्ष ने इस अवसर पर कहा कि हम सब हिंदी भाषा के प्रति गर्व का अनुभव करेंगे तो समाज में स्वाभिमान की वृत्ति जाग्रत होगी। राजेश सूर्यवंशी ने हिंदी दिवस पर अपने संबोधन में कहा कि विश्व स्तर की बात करे तो मंदारिन, स्पेनिश और अंग्रेजी के बाद हिंदी चैथी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है। हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने वाला पहला राज्य बिहार ही है जिसने 1881 में बिहार ने उर्दू को हटा कर हिंदी को अपनी आधिकारिक भाषा घोषित किया था। अंग्रेजी में सबसे अधिक बोला जाने वाला शब्द “हेलो” है, वही “नमस्ते” हिंदी का सबसे ज्यादा बोला जाने वाला शब्द हैै। हिन्दी भाषा सीखना आसान माना जाता है क्योंकि इसमें शब्दों का उच्चारण ठीक वैसा होता है, जैसा कि हम लिखते हैं। हिंदी एक समृद्ध भाषा है। इसका इतिहास एवं इसकी व्याकरण अत्यंत उन्नत है। हिंदी को भविष्य की भाषा कहना अतिश्योक्ति नही है। 1150 से हिंदी साहित्य की रचना हो रही है, जो निरंतर नई टेक्नोलाजी में भी विकासशील है। हिंदी भाषा हमारी संवेदना का प्रतीक है। आत्मियता से ओतप्रोत हिंदी भाषा का सम्मान करना हम सबका कर्तव्य है। विश्व मंच पर हिंदी को पहुंचाने में बाजपेयी की के योगदान का स्मरण करते हुए शिक्षक श्री सूर्यवंशी ने बताया कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी जी ने सर्वप्रथम हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में स्थापित करवाकर मान बढ़ाया जिसको वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विश्वव्यापी सम्माननिय बनाने में अग्रसर हैं। उनका सभी देशों के राष्ट्र अध्यक्षों से हिंदी में बात करना एक बड़ा सार्थक प्रयास है जो हिंदी भाषा को विश्वव्यापी सम्मान दिलाने में सफल कदम है। कार्यक्रम का संचालन सफाई कर्मचारी श्री साधराम यादव ने तथा आभार प्रदर्शन छात्रा कुमारी नागेश्वरी साहू ने किया।



जिला पुलिस अधीक्षक ने नवाचारी शिक्षक राजेश सूर्यवंशी को दिया सम्मान


लायंस व लायनेस क्लब जांजगीर-नैला के संयुक्त तत्वावधान में शिक्षक दिवस 5 सितंबर 2019 के अवसर पर हाटल ड्रीम प्वाइंट जांजगीर में शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। आयोजन में जिले भर के शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले सेवानिवृत्त व वर्तमान में कार्यरत सेवाभावी शिक्षकों का सम्मान किया गया। इसी कड़ी में नवाचारी शिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी को मुख्य अतिथि जिला पुलिस अधीक्षक पारूल माथुर सहित मंच के सदस्यों ने मोमेंटो, श्रीफल व कलम भेंटकर सम्मानित किया।  
विदित हो कि वर्ष 2017 में तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक अजय यादव ने इनके विद्यालय शास. पूर्व मा.शाला नवापारा (अमोदा) में पहुंचकर डिजिटल स्कूल का उद्घाटन कर विद्यालय को कम्प्यूटर सेट उपहार में दिया था। यह जिले का पहला डिजिटल स्कूल बना जो वर्तमान में सफलता पूर्वक संचालित हो रहा है। शिक्षक श्री सूर्यवंशी को जल व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में नवाचारी शैक्षणिक गतिविधियां के लिए हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भी राष्ट्रीय शिक्षक नवाचार पुरस्कार 2019 से नवाजा गया है। नवाचारी शिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने अपने विद्यालय परिवार की ओर से एस.पी. मेडम, ठा. देवेश सिंह, श्रीमती प्रियंवदा गौरहा, ऋषिकेश उपाध्याय सहित क्लब के सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि यह सम्मान उन्हे और बेहतर शैक्षणिक गतिविधि के लिए सदैव प्रेरित करता रहेगा। 








शिक्षक दिवस पर आयोजन, डिजिटल विद्यालय में शिक्षकों का बच्चों ने किया सम्मान


गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। 
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।। 
बिना गुरू के ज्ञान मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। गुरू मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ, गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।
जांजगीर-चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक के शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला नवापारा (अमोदा) में 5 सितंबर को डिजिटल विद्यालय में धूमधाम से शिक्षक दिवस सेलीब्रेट किया गया। इस मौके पर बच्चों ने खुद कार्यक्रम का संचालन किया। बाल केबिनेट के प्रधानमंत्री राज यादव, खेल मंत्री करन कुमार, स्वास्थ्य खाद्य एवं स्वच्छता मंत्री कुमारी अंजली, शिक्षामंत्री कुमारी मानसी यादव, वित्त मंत्री कुमारी पूजा कंवर, कानून मंत्री कुमारी नागेश्वरी साहू, उद्योग मंत्री कुमारी नंदनी यादव व पर्यावरण मंत्री कुमारी मंगली केंवट सहित विद्यार्थियों ने कहा कि शिक्षक वह शुभ दिन है, जो विद्यार्थियों को आशा की तरफ प्रेरित कर उनकी कल्पना शक्ति रूपी दीपक को प्रज्ज्वलित कर उनके भीतर सीखने की ललक पैदा कर सकता है। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने विद्यालय के प्रधान पाठक श्री कन्हैया लाल मरावी, उवशि श्री हीरालाल कर्ष, श्री संतोष कुमार श्रीवास, श्री राजेश कुमार सूर्यवंशी व साधराम यादव का बुके भेंटकर, आरती उतारकर और कलम भेंटकर सम्मान किया। बच्चों ने शिक्षक दिवस पर डिजिटल कक्ष को फूलों और गुब्बारों से सजाकर स्कूल के माहौल को भरपूर मनोरंजक बना दिया था। इस प्रकार शिक्षक दिवस का यह कार्यक्रम हर्ष उल्लास भरे वातावरण में संपन्न हुआ। प्रधान पाठक श्री कन्हैयालाल मरावी ने इस अवसर पर कहा कि विद्यार्थियों में जीवन जीने की कला एक शिक्षक ही सिखाता है। आज के परिवेश में नैतिकता के लिए दृढ़ संकल्पित होना अत्यंत आवश्यक है। उच्च वर्ग शिक्षक श्री हीरालाल कर्ष ने अपने उद्गार में कहा कि भारतवर्ष में आदि-अनादि काल से गुरु-शिष्य परंपरा का सिलसिला चलता आ रहा है। गुरुओं के ज्ञान के प्रकाश से भारत लंबे समय तक विश्वगुरू बना रहा। दुनिया के कई अविष्कारों की जननी भारतभूमि रही है और यहां के शिक्षकों की ख्याति सात समंदर पार तक रही है। हमें अपने गुरूओं का सदैव आदर सम्मान करना चाहिए। उच्च वर्ग शिक्षक श्री संतोष कुमार श्रीवास ने सभी विद्यार्थियों को बधाई प्रेषित करते हुए कहा कि हमारे देश में गुरू या शिक्षक की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें भगवान से ऊपर का दर्जा दिया गया है. वास्तव में ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें शिक्षक ही भगवान की पहचान करना सिखाते हैं. इसके साथ ही किसी भी व्यक्ति के मानसिक-बौद्धिक विकास में शिक्षक का सबसे बड़ा योगदान होता है। अपने संबोधन में शिक्षक श्री राजेश कुमार सूर्यवंशी ने कहा कि सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन ज्ञान के महासागर थे। शिक्षा से उनको गहरा लगाव था। डा.  राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के एक गांव में हुआ था। राधाकृष्णन की आर्थिक हालात ठीक ना होने पर भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की और एक महान शिक्षक और दार्शनिक बनें प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कालेज में सहायक प्राध्यापक बने। देश आज भी उनको महान शिक्षाविद और दार्शनिक के रूप में याद करता है। इसी तरह से सावित्री बाई ज्योतिराव फुले को देश की पहली महिला शिक्षक के रूप में जाना जाता है, उन्होंने लड़कियों की शिक्षा में अहम योगदान दिया था। शिक्षक दिवस कार्यक्रम को सफल बनाने शाला प्रबंधन व विकास समिति के पदाधिकारियों सहित महिला समूह व सभी विद्यार्थियों का सराहनीय योगदान रहा। 
                                                       शिक्षक दिवस का महत्व
विश्व के कुछ देशों में शिक्षकों (गुरुओं) को विशेष सम्मान देने के लिये शिक्षक दिवस का आयोजन होता है। कुछ देशों में छुट्टी रहती है जबकि कुछ देश इस दिन कार्य करते हुए मनाते हैं। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में अलग-अलग तारीख पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। देश के पहले उप-राष्ट्रपति डा. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे।  


















































   



डिजिटल स्कूल में दीक्षांत समारोह के साथ परीक्षाफल की घोषणा, बच्चों को बांटे गये अंकसूची...

नवागढ़ ब्लाक के शास.पूर्व माध्य.शाला नवापारा (अमोदा) में शिक्षा सत्र के अंतिम दिवस आज 29 अप्रैल शनिवार को प्रगति पत्रक वितरण सह दीक्षांत समार...