The Digital Teacher : October 2020

विभागीय कार्यों को गति देने अमोदा संकुल के प्रधान पाठकों व शिक्षकों की हुई बैठक ....


आज 12 अक्टूबर 2020 सोमवार को जांजगीर-चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक के संकुल केन्द्र अमोदा में संकुल अंतर्गत आने वाले समस्त शासकीय प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, हाई व हायर सेकेण्डरी विद्यालयों के प्रधान पाठकों, प्राचार्यों व शिक्षकों की बैठक आहूत की गयी। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए आयोजित बैठक में इंस्पायर अवार्ड योजना, मध्यान्ह भोजन का सूखा राशन वितरण, आनलाईन व आफलाईन कक्षाएं आयोजित करने, पढ़ई तुहर दुआर वेबसाईट में बच्चों का असेसमेंट करने जैसे महत्वपूर्ण बिंदूओं पर चर्चा की गयी। बैठक में नवाचारी शिक्षक व प्रशिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने आनलाईन/आफलाईन असेसमेंट की प्रक्रिया को समझाते हुए कहा कि सभी बच्चों का वेबसाईट में विवरण दर्ज करना होगा जिसके बाद विषवार दक्षताओं का आंकलन करना होगा। यह कार्य अत्यंत अनिवार्य है जिसे जल्द से जल्द पूर्ण करना होगा। उन्होंने कहा कि इंस्पायर अवार्ड के तहत प्रत्येक स्कूलों से 5 बच्चों का नामांकन अनिवार्य किया गया है जिसे समय सीमा में पूर्ण करें। इसके अलावा प्रतिदिन आनलाईन कक्षा लेने के लिए प्रेरित किया गया। शैक्षिक समन्वयक श्री अनिल कुमार पाण्डेय ने कहा कि सभी प्रधान पाठक मोबाईल पर भेजे जा रहे सूचना संदेश को गंभीरता से लेते हुए विद्यालयीन कार्यों को समय सीमा में संपादित करें। बैठक में शैक्षिक समन्वयक श्री अनिल कुमार पाण्डेय, श्री राजेन्द्र यादव शास.प्राथ.शाला अकलतरी, श्री प्रमोद कुमार साहू प्रधान पाठक शास.प्राथ.शाला गाड़ापाली, श्री धनंजय शुक्ला पूर्व माध्य. शाला गौद, श्री प्रमोद कुमार हंसराज प्रधान पाठक पूर्व माध्य. शाला भादा, श्रीमती ज्योति तंबोली पूर्व माध्य. शाला मौहाडीह, श्री डेमन पाण्डेय पूर्व माध्य. शाला मौहाडीह, श्री लीलाधर साहू शास.जन. प्राथ.शाला अमोदा, श्री गमेन्द्र भारद्वाज शास.प्राथ.शाला अकलतरी, श्री अश्वनी यादव शास.जन. प्राथ.शाला अमोदा, श्री सोनाउराम मांझी शास.प्राथ.शाला केवा, श्रीमती लक्ष्मीन कंवर शास.नवीन प्राथ.शाला अमोदा, श्री चिंतामणी साहू शास.नवीन प्राथ.शाला भैसदा, श्री अनिल देवांगन शास.पूर्व माध्य.शाला पीथमपुर, श्रीमती कांता तिग्गा शास.प्राथ.शाला गौद, श्री विशाल शर्मा शास.जन. प्राथ.शाला पीथमपुर, श्री कन्हैया लाल मरावी शास. पूर्व माध्य. शाला नवापारा (अमोदा), संतोष श्रीवास शास. पूर्व माध्य. शाला नवापारा (अमोदा), श्री हीरालाल कर्ष शास. पूर्व माध्य. शाला नवापारा (अमोदा), श्रीमती रूकमणि डहरिया पूर्व माध्य. शाला पीथमपुर, श्री शिवमणि कश्यप प्राथ. शाला अमोदा, श्री विद्यानंद राठौर शास. नवीन प्राथ. शाला भैसदा, श्री उमाशंकर सूर्यवंशी पूर्व माध्य. शाला अमोदा, श्री सुभाषचंद्र बिंझवार प्राथ.शाला भादा सहित संकुल के शिक्षकगण उपस्थित रहे।







सामयिक चुनौतियां बनाम गाधी दर्शन


मस्त मानव समाज आज जिस त्रासदी से गुजर रहा है और प्रत्येक क्षण भय व किसी अनहोनी से आशंकित हो रहा है वह कही न कही हमारे द्वारा प्रकृति के साथ की गयी हिंसात्मक बर्ताव, लोलुपता और भोग लिप्सा की प्रवृत्ति का ही एक परिणाम है। ऐसे समय में जरूरत है हम मानव समाज को गांधी दर्शन को समझने व अपनाने का क्योंकि गांधी दर्शन में प्रकृति उपभोग की वस्तु नहीं है बल्कि मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे की देखभाल करते हुए आगे बढ़ने का नाम है। गांधी दर्शन में मनुष्य व प्रकृति एक अविभाज्य अंग है। आज हम सब कोरोना संकट की त्रासदी से गुजर रहे है जहां हमारी संपत्ति, हमारा पद प्रतिष्ठा सब कुछ धरा रह जा रहा है। ऐसे में हमें विकास की गांधीवादी दर्शन की अवधारणा पर पुनर्विचार करना होगा तब हम समाज में असमानता की बढ़ती खाई, नष्ट होते पर्यावरण, अनिश्चित होते आर्थिक जीवन और तकनीकी द्वारा अपहृत होती निजता की समस्या का हल पा सकेंगे। आज सामयिक चुनौतियों के बीच महात्मा गांधी का जीवन दर्शन एक आशा की किरण की भांति नजर आ रहा है।
हम कोरोना जैसे वैश्विक महामारी से घिर चुके है ऐसे में हमारी जीवनचर्या प्रभावित हो चली है हमारा रहन सहन पूरी तरह से बदल चुका है और यह सब आधुनिक सभ्यता की देन है। हम सब जानते है कि आधुनिक सभ्यता की आलोचना जितनी समग्रता से गांधी जी ने की है वह विचारणीय है। उनका प्रत्येक विचार तर्क और आचरण की कसौटी पर कसा हुआ है जिसे आत्मसात कर हम बहुत सारी समस्याओं से निजात पा सकते है। इस वर्ष हम महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनाने जा रहे है। गांधी जी के आर्थिक दर्शन का मूल मंत्र था अपनी जरूरत के मुताबिक उत्पादन करना, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना, लोभ न करना, यदि आप के पास अधिक धन संपत्ति है तो यह समझना कि परमात्मा द्वारा प्रदत्त दौलत के आप मालिक नहीं हैं, अपितु एक ट्रस्टी हैं। और परमात्मा की इस दौलत का जनकल्याण के लिए अधिकतम उपयोग करने की जिम्मेदारी आप पर है किंतु वर्तमान में यह केवल एक सिद्धांत बनकर रह गया है प्रत्येक इंसान जरूरत से अधिक धन का अर्जन संग्रहण कर रहा है और जनकल्याण के लिए चंद हाथ ही आगे बढ़ रहे है। ऐसे में हमें गांधी के आर्थिक दर्शन को आत्मसात करने की जरूरत है।  गांधी जी लिखते हैं- मेरी राय में भारत की- न सिर्फ भारत की बल्कि की सारी दुनिया की अर्थ रचना ऐसी होनी चाहिए कि किसी को भी अन्न और वस्त्र के अभाव की तकलीफ ना सहनी पड़े। दूसरे शब्दों में हर एक को इतना काम अवश्य मिल जाना चाहिए कि वह अपने खाने पहनने की जरूरत पूरी कर सके। वर्तमान में हमारा देश बेरोजगारी से जूझ रहा है धन का असमान वितरण समाज में अपराध को जन्म दे रहा है। किंतु गांधी दर्शन को अपनाकर हम इन समस्याओं से निजात पा सकते है। सामाजिक समता की स्थापना के लिए विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था को गांधी जी आवश्यक मानते थे। उनके अनुसार ऐसा ही विकेंद्रीकरण देश के आर्थिक जीवन में भी होना चाहिए। वे बड़े बड़े कल कारखानों की स्थापना के विरुद्ध थे। उनके विकेंद्रीकरण के सिद्धांत का विस्तार यदि पर्यावरण के क्षेत्र में करें तो विशाल बांधों की स्थापना के बजाए छोटे छोटे स्टॉप डैम्स की स्थापना और तालाबों के संरक्षण तथा संवर्धन का सिद्धांत सामने आता है। ग्राम स्वराज्य की अवधारणा पर्यावरण मित्र जीवन शैली की आदर्श अवस्था को दर्शाती है। किंतु वर्तमान स्थिति इसके विपरित है बड़े कारखानों से निकलते जहरीले धुएं और कटती हरियाली मन को व्यथित करती है। ऐसे विकास जो चंद पूंजीपतियों के हित में है और करोड़ों मानव प्रकृति के विनाश से व्यथित हो रहे है। कोरोना काल में इस तरह के विकास मानव जीवन बचाने में नाकाम हो रही है। गांधी जी की ग्राम स्वराज्य की कल्पना अनुसार कोई भी गांव अपनी अहम जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर नहीं होगा वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए कपास खुद पैदा करेगा जहां गाय, भैस, बकरी स्वतंत्रता पूर्वक चर सकें और गांव के बड़ों व बच्चों के लिए मनोरंजन के साधन और खेलकूद के मैदान उपलब्ध हो किंतु स्थिति आज ऐसी नहीं है हमें गांधी दर्शन को आत्मसात करने की नितांत आवश्यकता है। इसे अपनाकर बहुत हद तक बेरोजगारी की समस्या से उपर उठ सकते है। आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति जिसके पास थोड़ा सा भी खाली जमीन है उसमें वह चाहे तो उपयोगी फसलें उगाकर व उन्हें बेचकर आर्थिक लाभ उठा सकता है। इससे न केवल आर्थिक लाभ होगा अपितु जमीन का सदुपयोग होगा और सेहत भी बना रहेगा जिससे कोरोना जैसे बीमारी से लड़ने हमें आंतरिक बल मिलेगा। आज प्रकृति का दोहन केवल मानव समाज ही कर रहा है जबकि यह समस्त जीव जंतुओं के अधिकार क्षेत्र में है। लाकडाउन में पूरी पृथ्वी जिस तेजी से स्वच्छ हुआ है उससे हमें सीखने की जरूरत है। आज प्रकृति पहले की अपेक्षा ज्यादा तरोताजा है। पक्षियों का चहचहाना मन को कही अधिक सुकून दे रही है बस जरूरत है इस सुकून को बनाये रखने का। आज पूरे देश में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण विभिन्न संस्थान व फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं और इस आपदा में उपेक्षित होने के कारण वहां काम करने वाले मजदूरों के पास इस कठिन समय में घर लौटने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. तो, बड़ी समस्या यह है कि क्या लॉकडाउन खुलने के बाद जब स्थितियां सामान्य हो जाएंगी तो क्या यह डरा-सहमा मजदूर दोबारा उन फैक्ट्री तक जाने की हिम्मत भी जुटा पाएगा। ऐसे में जरूरत है गांधी दर्शन अनुसार अपने गांव में रहकर स्वरोजगार की ओर उन्मुख होने की। आज हम शहरों की चकाचैंध में खो चुके है, आधुनिकता जीवन शैली हमारे स्वास्थ्य पर विपरित असर डाल रही है, गांधीवादी दर्शन इन समस्याओं का समाधान है यह सत्य कथन है कि यदि ग्राम उद्योगों का लोप हो गया तो भारत के लाखों गांवों का सर्वनाश ही समझिए। हमें गांवों की ओर लौटने की जरूरत है। स्वस्थ्य दिनचर्या का पालन करके हम कई तरह की बीमारियों से भी बचे रह सकते है। गांधी जी का आर्थिक और राजनीतिक दर्शन भी अहिंसा की ही बुनियाद पर टिका हुआ है। मुनाफे और धन पर अनुचित अधिकार से आर्थिक हिंसा उत्पन्न होती है। ऐसे में हमें सामयिक चुनौतियों से गांधी दर्शन को आत्मसात कर निपट सकते है। महात्मा गांधी ने अपने समय के वैज्ञानिकों, विचारकों, लेखकों, चित्रकारों और संगीतकारों की रचनाशीलता को बहुत गहराई से प्रभावित किया था। आइजक न्यूटन के बाद वैज्ञानिक चिंतन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले अल्बर्ट आइंस्टाइन ने उनके बारे में कहा था कि आने वाली पीढ़ियां कठिनाई से ही विश्वास कर पाएंगी कि इस पृथ्वी पर हाड़-मांस का कोई ऐसा आदमी भी चलता-फिरता था। उर्दू के प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी तो अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक बन गए थे। महान सितारवादक रविशंकर ने महात्मा गांधी पर एक नया राग की रचना किया था, महात्मा का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, उन्होंने इस राग को  ‘मोहनकौंस’ का नाम दिया। रिचर्ड एटेनबरो की महाकाव्यात्मक फिल्म गांधी तो अब इतिहास में दर्ज हो ही चुकी है। इसे ग्यारह ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया जिसमें से आठ इसे मिले। किंतु दुर्भाग्य है कि आज के , विचारकों, लेखकों, चित्रकारों और संगीतकारों को यह सब सामान्य बात प्रतीत होता है, आज जरूरत है हम सबको गांधी दर्शन को आत्मसात करने उसके बताये मार्गों पर चलने कि ताकि सामयिक समस्याओं से निजात पा सके और एक स्वस्थ्य सुंदर समाज की रचना कर सके। 


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 150 वीं जयंती पर राज्य स्तरीय आनलाईन प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में हिस्सा ले और पाये जिला शिक्षा अधिकारी सहित विभागीय अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र ....

आयोजक- टीम पढ़ई तुहर दुआर जांजगीर-चांपा (छ.ग.)

प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए नीचे दिए लिंक पर जाये –

 https://forms.gle/dDFc8VmquTjx58BS8


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