The Digital Teacher : बच्चों की अभिव्यक्ति की आजादी है स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देना ...

बच्चों की अभिव्यक्ति की आजादी है स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देना ...


लिखने का मुख्य उद्देश्य अभिव्यक्ति है, चित्रकारी लिखित अभिव्यक्ति या लिखने का पहला रूप है। चित्रकारी बच्चों का अपने को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण चरण है। स्वतंत्र लेखन के लिए बच्चों को पहले स्वतंत्र विचार बनने के लिए प्रोत्साहन देना जरूरी है। जब तक बच्चे सही शब्दों को नहीं पहचान लेते है तब तक वे स्वयं इजाद किये हुए शब्द और भाषा का इस्तेमाल करते रहते है। घसीटे और चित्रकारी की तरह बच्चों द्वारा खोजे गये शब्द लिखने के विकास में एक महत्वूर्ण पड़ाव होता है। स्वतंत्र लेखन को कैसे प्रोत्साहन दे मुद्दे पर यह अनुभव मैंने द टीचर एप्प के आनलाईन कोर्स से जो सीखा है अपने अनुभवों लिखित रूप में आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं। यह कोर्स प्राथमिक कक्षाओं में भाषा पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए उपयोगी है। जिसमें बच्चों की स्वतंत्र रूप से खुद लिखने की क्षमता को सहारा और बढ़ावा देने सम्बन्धी मुद्दों और सुझावों पर बातचीत की गयी है।
स्वयं को अभिव्यक्त करने का महत्व-
मैं कई बार सोचता हूं कि काश ऐसा होता कि लोग बिना बोले आपस में विचारों का आदान प्रदान कर लेते मस्तिष्क से मस्तिष्क, ऐसा मौन बातचीत हम अपने दोस्तों और परिजनों से कर पाते तो कितना अच्छा होता तब तो हमें लिखने की जरूरत न पड़ती। शिक्षक साथियों प्राचीनकाल से ही किस्से, कहानियां, लोकगीत व कविताएं मुह जुबानी ही सुनायी जा रही है। किंतु इस मामले में एक समस्या यह आती है कि समय के साथ कई कहानियां गायब हो गयी तो वही हर व्यक्ति के बताने के तरीके के साथ कहानियां बदलती चली गयी। हमारी सबसे प्रमुख कहानियां रामायण, महाभारत, अन्य कई धार्मिक ग्रंथ शुरूआत में मौखिक ही रहे फिर किसी ने कागज पर लिखने का किसी ने न सोचा होता तो ये गुम ही हो जाते।

लिखने की शुरूआत-
लिखने की शुरूआत को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि सबसे पहले लिखना कैसे और क्यो शुरू किया गया होगा? हमारे पूर्वज हमें कहानी बताते थे किंतु भाषायी विविधता कई बार सुनने समझने में दिक्कत करती है। तब आज की तरह कोई सोशल मीडिया नहीं था। कई बार अलग-अलग संस्कृति व समुदाय के लोग भाषायी विविधता के कारण आपस में बात नहीं कर पाते थे। किंतु दीवारों पर की गयी चित्रकारी की मदद से वे अन्य समुदाय की भावना को जरूर समझ लेते थे और उनके समक्ष अपनी बात रख पाते थे। कुल मिलाकर आरंभ में चित्रों की मदद से ही बातचीत की जाती थी। इस तरह से हम कह सकते है कि धरती पर लिखावट का सबसे पहला रूप चित्रकारी ही था। समय के साथ मुश्किल चित्र आसान होते चले गये और कुछ चित्र हमारी वर्णमाला का हिस्सा भी बन गये। 


दुनिया की सभी लिखित प्रणाली इंसानों से जानकारी बाटने के दौरान ही शुरू हुई। लिखने का मुख्य उद्देश्य अपने विचारांे, अहसासों व योजनाओं को अभिव्यक्त करना रहा है। इंसानों की मूल जरूरत है अपने आप को अभिव्यक्त करना और लिखना एक ऐसा जरिया है जिससे इंसान अपने आप को समय व जगह से परे अभिव्यक्त कर पाता है। स्कूलों में लिखना सिखाना मूल कौशल है जिस पर काफी जोर दिया जाता है। हम बच्चों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने के लिए सक्षम बनाना चाहते है जिसके लिए लिखना सिखाना जरूरी होता है। लिखना केवल भाषा की कक्षा तक ही सीमित नहीं होती है। हमारे विद्यार्थी स्कूल का अधिकांश समय लिखने की कला विकसित करने में व्यतीत करते है। लेकिन फिर भी हम यह दावा नहीं कर सकते है कि हम बच्चों को एक अच्छा लेखक बना रहे है? क्योंकि लिखना सीखना अलग बात है और आत्मविश्वास से भरे स्वतंत्र लेखक जिसमें लेखक का भाव व्यक्त हो।
बच्चों के लिए चित्रकारी लिखने की शुरूआत मानी जाती है। जब बच्चे अपने माहौल में प्रिंट को और बड़ों को लिखते हुए देखते है। तो वे ऐसा करने का प्रयास करते है अपने चित्रकारी के माध्यम से वो अपनी बात दुनिया से साझा करते है। चित्रकारी बच्चों के बातचीत और अभिव्यक्त करने की तरफ एक महत्वपूर्ण चरण है। इसलिए प्राथमिक कक्षाओं के मामलों में लिखने के पहले चित्रकारी को प्रोत्साहन दिया जाना अत्यंत आवश्यक है। किंतु यह खेदजनक है कि बच्चे जब बड़े होने लगते है तब वे क्या चित्र बनाये क्या अभिव्यक्ति दे यह अन्य लोग तय करने लगते है। कक्षा में भी शिक्षक तय करते है कि बच्चों को क्या चित्र बनाना है। जब विद्यार्थी अपने मन से चित्र बनाता है तो कई बार शिक्षक से डाट खानी पड़ती है कि मैंने जो कहा वो नहीं बनाया। आमतौर पर किताबों में दिये गये चित्रों को ही बनाने के लिए निर्देशित किया जाता है। इस तरह के माहौल में बच्चा यह मानने लगता है कि वह जो भी चित्र बनायेगा उसमें बड़ों की मंजूरी मिलना जरूरी है और चित्र उसके अभिव्यक्ति का जरिया नहीं है। ऐसे में हम सब उनकी अभिव्यक्ति की स्तंत्रता को समाप्त करने की दिशा में काम कर रहे होते है। बच्चों को खड़ी रेखा, सीधी रेखा, टेड़ी रेखा आदि बनाने का अभ्यास बार बार करायया जाता है ताकि वे आगे जाकर अक्षर लिखने में दक्ष हो सके इसके बाद शुरू होती है अक्षरों को बनाने की और बच्चे यही से शुरू करते है कापी करने की प्रवृत्ति का। हम सभी शिक्षक बच्चों के साथ लगभग यही गतिविधि करते है किंतु यह सब समय के साथ गतिविधि मशीनी सा लगता है न कोई अर्थ न कोई मजा। यदि इसी तरह की गतिविधि जारी रहे तो बच्चे केवल कापी ही करते रहेंगे और उन्हे लिखना महज एक काम लगने लगेगा और वे बिना किसी सवाल के बड़ों की बात मानकर केवल और केवल लिखना ही जारी रखेंगे। ऐसी दृनिया जहां बड़े ही सबकुछ जानते है बच्चों के लिखने का उद्देश्य ही गुम हो जाता है। और लिखना उनके लिए अभिव्यक्ति का जरिया नहीं रह जाता है। यही वजह है कि जबहम कभी बच्चों को कुछ स्वयं से लिखने को कहते है वो नहीं लिख पाते या फिर शिक्षक की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते है। हमें लिखने को हम बच्चों के लेख में त्रुटियां ढूंढते है जबकि हमें अर्थ भी देखने की जरूरत है। बच्चे खुद को अभिव्यक्त करने क लिए नये शब्दों का इस्तेमाल करते रहते है कईबार वे खुद शब्द बना लेतते है जिनका अर्थ हमें पता नहीं होता क्योंकि वे अर्थहीन होते है। क्योंकि हमारी भाषा के नियमों के अनुरूप नहीं होता है। बोलने के विपरित लिखना एक धीमी प्रक्रिया है एसमें सोचने और शब्दों का चयन करने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इससे वर्तनी की, शब्दों की, वाक्यांशों की खोज होगी। बच्चे के लिखने के विकास में एक महतवपूर्ण पड़ाव है उनके द्वारा इजाद किये गये अर्थहीन शब्द जिसे शिक्षक बाद में बदलकर अर्थयुक्त बना दे। शिक्षक के रूप में हमारा दायित्व केवल ऐसा वातावरण निर्माण करने की है जिसमें बच्चा स्वतंत्र लेखन के लिए प्रोत्साहित हो सके।



कक्षा में लिखना-
कई बार हम कक्षा में बच्चों को लिखने का काम देते है लेकिन उसे निर्धारित प्रारूप में लिखने के निर्देश देते है या फिर लिखने का एक खांका या माडल देते है जिसके बाद बच्चे की स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति समाप्त हो जाती है और वे केवल कापी करना शुरू कर देते है। इस तरह का तरीका बच्चों के स्वतंत्र लेखन को हतोत्साहित करने वाला होता है हमें ऐसे तरीको से बचने की जरूरत है। आमतौर पर कक्षा में शिक्षक द्वारा बच्चों को अर्थ लिखने, प्रश्नों के उत्तर लिखने, वाक्य बनाने, खाली स्थान भरने, निबंध लिखने जैसे काम दिये जाते है। हम जो निबंध का काम बच्चों को देते है उनके विषय परंपरागत होते है जो कि निर्धारित पाठ्यक्रम का हिस्सा होते है। इसमें बच्चों की अभिव्यक्ति कौशल का जरा भी विकास नहीं होता है। इनमें बच्चों के मन की आवाज गायब होती है बल्कि ये निबंध जानकारी का एक टूकड़ा मात्र ही होता है जिसमें बच्चा अपनी अभिव्यक्ति नहीं दे पाता है। इनकी भाषा बच्चों की दैनिक जीवन की भाषा से मेल नहीं खाती बल्कि गाइड बुक व व्याकरण किताबों की भाषा से मेल खाती है। इस तरह का लेख करवाना बच्चों को हमेशा के लिए बड़ों पर या किताबों पर निर्भर रहने का आदी बना देता है। एक शिक्षक के रूप में हम पाठ्यक्रम और परीक्षाओं की जरूरतों के मुताबिक ही पढ़ाना लिखाना सही मानते है। साथियों हम बच्चों को अपना विषय चुनने दे और खुलकर लिखने दे पहले उन्हे लिखने दे व्याकरण, वर्तनी आदि की चिंता न करें। बच्चों में अभिव्यक्ति और प्रवाह के विकास की शुरूआत उनके अपने अनुभवों से होती है। एक सच्चा लेख वह होता है जिसमें लेखक के विचार, भाव प्रतिबिंबित हो, बच्चों को कुछ खास विषयों पर लेख लिखने के लिए नहीं बल्कि लिखित अभिव्यक्ति के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
स्वतंत्र लेखन के लिए सक्षम वातावरण का निर्माण-
एक शिक्षक के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कक्षा अपने स्कूल के सभी बच्चों को अच्छी तरह से जाने और इसके लिए लिखना एक बढ़िया जरिया हो सकता है। इसके लिए कक्षा में एक पत्रिका का निर्माण किया जाना चाहिए। मेेरे विद्यालय में यह शाला दर्पण के रूप में जारी है। इसमें बच्चे खुलकर अपनी अभिव्यक्ति को उकेरते है। इसमें बच्चे और लिखने के लिए प्रेरित होते है क्योंकि और लिखना बेहतर लिखने के लिए पहला कदम होता है। बच्चों की अभिव्यक्ति इस बात से भी प्रभावित होती है कि कक्षा में उन्हे कैसा वातावरण मिल रहा है। शिक्षक बच्चों के हर लेखन से पहले यदि उन्हे मार्गदर्शन करने लगे कि उन्हे क्या ओर कैसे लिखना है तो यह बच्चों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने जैसा कृत्य होगा। रिस्क लेने की हिम्मत करना स्वतंत्र लेखन का पहला चरण होता है लेकिन इसके लिए उसे स्कूल में शिक्षक व अन्य बच्चों से अपनेपन का माहौल मिलना भी जरूरी है अन्यथा वह अपनी बात साझा नहीं कर पायेगा। हम अपने घर परिवार अपने मित्रों के साथ खुलकर बातचीत करते है जबकि एक नये जगह में या विद्यालय में सहपाठियों के साथ बहुत कम बात करते है सोच समझकर बात करते है। ऐसे में उनकी सृजनात्मकता का ह्वास होता है। आमतौर पर सभी कक्षाओं में शिक्षकों द्वारा आंकलन और अंकों पर ही जोर दिया जाता है। लेकिन हमको इनसे परे जाकर भी उनके लिए काम करने की जरूरत है पाठ के अंत में बच्चों को अलग-अलग तरह के रूचिपूर्ण असाइनमेंट देकर हम उनकी स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन दे सकते है जिसमें अंक देने का कोई प्रावधान न हो बल्कि बेहतर उत्तरदायित्व के लिए फीडबैक दे। विद्यालय स्तर पर पत्रिका का निर्माण बच्चों को जानने का और लेखन को प्रोत्साहन देने का एक अच्छा जरिया हो सकता है।
स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देने वाली गतिविधि-
स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए हम कक्षा में बच्चों को उनके अनुभवों पर लिखने, किसी चित्र पर कहानी तैयार करने अथवा किसी आपबीती घटना, मेला, बाजार, गांव का उत्सव पर लिखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते है। बच्चों को अपने बारे में बात करना बहुत रोचक लगता है वे कहा गये, किनसे मिले क्या बात हुई आदि उनके लेख के विषय हो सकते है। बच्चों को अपने बारे में, अपने अनुभवों, अपने परिवार, दोस्तों आदिक के बारे में लिखना पसंद आता है। दिमागी मंथन किसी भी विषय पर जानकारी एकत्र करने का एक अच्छा तरीका है। दिमागी मंथन की मदद से लिखने के विषयों को बढ़ाया जा सकता है।




रचनात्मक प्रतिक्रिया देना-
बच्चे जब पहली बार स्कूल आना शुरू करते है तब उनके लिए सब कुछ नया होता है। बच्चे लेखन के लिए किताब, बड़ों या शिक्षक पर ही निर्भर होते है। हम सब बच्चों को सही करने के लिए लगे रहते है यह करों, यह मत करों लेकिन हमारी यह टोकाटाकी कई बार बच्चों को बेहतर करने से रोकती है।  बच्चा घर में अनौपचारिक रूप से बहुत कुछ सीख चुका होता है किंतु स्कूल में दाखिला लेने के साथ ही वह औपचारिक रूप से सीखने की शुरूआत करता है। अब तक बच्चा भाषा की लिखित रूप से वाकिफ नहीं होता है कई बार स्कूल और घर की भाषा में तालमेल नहीं बैठ पाता जिससे भी उसके सीखने की क्षमता पर विपरित असर पड़ता है। स्वतंत्र लेखन के लिए प्रोत्साहित करना हो तो उनके सोचने की प्रक्रिया को महत्व देना होगा। लेकिन एक शिक्षक के रूप में बच्चों के लेख को सही करना भी होता है। लेकिन ऐसा करने के बेहतर तरीके हो सकते है गलतिया सुधारने के चक्कर में बच्चे कही लिखना ही न बंद कर दे। शिक्षक रोजाना 30 से 40 कापियां रोज ही चेक करते है ऐसे में व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक विद्यार्थी की कापी पर फीडबैक देना एक कठिन काम हो जाता है। बच्चों द्वारा लिखी बातें हमारे विचारों से अलग हो सकती है लेकिन वो उनके लिए अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण होती है बच्चों की कापियों को जाचने के दौरान हमें सी-सी-आर का सहारा लेना चाहिए-
सी-सराहना  COMMEND (लेख की प्रशंसा करना)
सी-समीक्षा  COMMENT (बेहतर बनाने के लिए समीक्षा करना)
सी-सुझाव  RECOMMEND (आगे बढ़ाने के लिए सुझाव)
यह प्रक्रिया लिखने के उद्देश्य को काफी रूचिपूर्ण बना सकती है। अनुसंधान बताते है कि बच्चों की कापियों में की जानी वाली गलतियों को बाद में भी ठीक किया जा सकता है। लाल निशान से काटने के चिन्हों को लेकर कई बार बच्चे लिखने के लिए रूचि नहीं ले पाते या फिर हतोत्साहित हो जाते है। सीसीआर पद्धति से हम धीरे से बच्चों को उनकी गलतियों की ओर ध्यान दिला सकते है और इससे वे हतोत्साहित भी नहीं होते है बल्कि वे समय के साथ अपनी गलतियां खुद ही पहचानना और ठीक करना शुरू कर देते है। आधुनिक अनुसंधान भी यही कहते है कि जब बच्चे लिखने में रूचि लेना शुरू कर देते है तब वे अपनी गलतियों को न केवल पहचानते है बल्कि उन्हे सुधारने में भी लग जाते है भले ही वे सारी गलतियां ठीक न कर पाये लेकिन स्वतंत्र लेखन की प्रक्रिया की शुरूआत जरूर हो जाती है और हमारा यही तो मुख्य उद्देश्य होता है। इसे हम प्रक्रिया दृष्टिकोण का नाम दे सकते है।





No comments:

Post a Comment

डिजिटल स्कूल में दीक्षांत समारोह के साथ परीक्षाफल की घोषणा, बच्चों को बांटे गये अंकसूची...

नवागढ़ ब्लाक के शास.पूर्व माध्य.शाला नवापारा (अमोदा) में शिक्षा सत्र के अंतिम दिवस आज 29 अप्रैल शनिवार को प्रगति पत्रक वितरण सह दीक्षांत समार...