The Digital Teacher : कैसा हो पढ़ने लिखने के शुरूआती व्यवहार

कैसा हो पढ़ने लिखने के शुरूआती व्यवहार



शिक्षक साथियों सादर नमस्कार,
द टीचर एप्प का यह कोर्स प्राइमरी कक्षाओं में भाषा पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए उपयोगी है। इस कोर्स में बच्चों के पढ़ने-लिखने के शुरुआती व्यवहारों की चर्चा की गई है और इन व्यवहारों को समझकर इनका इस्तेमाल भाषा पढ़ना-लिखना सिखाने में कैसे किया जाए, इस बारे में सुझाव दिए गए हैं। यह कोर्स Emergent Literacy की अवधारणा को आप तक सहजता से पहुँचाएगा और आपके भाषा सिखाने के कौशल को बढ़ाएगा मैंने इस कोर्स को किया और अपने अनुभव जैसा कि मैंने पाया लिखने का प्रयास कर रहा हूं-
साथियों बच्चे पढ़ने लिखने के शुरूआती दौर में किताबों में और दीवारों पर घसीटा मारते है। इस प्रकार का व्यवहार दुनिया का हर बच्चा दिखाता है। हालांकि बड़ों को यह व्यवहार बेमायने लगता है जबकि असल में पढ़ने लिखने में इन व्यवहारों का अहम योगदान होता है जैसे बोलने की शुरूआत बच्चे खुद करते है उसी तरह पढ़ने की धारणा भी खुद बनाते है इस धारणा को इमरजेंट लिटरेसी कहते है। इमरजेंट लिटरेसी के व्यवहारों को हम कुछ इस तरह से समझ सकते है कि कई बार छोटे बच्चे जो अभी बोल भी नहीं पा रहे होते है अखबार या चित्रों वली किताबों को लेकर उत्सुक दिखते है चित्रों की ओर आकर्षित होते है। कम उम्र के बच्चों के हाथों में किताब आ जाये तो वो उन्हे इस्तेमाल करने की कोशिश करते है वा जानते है कि किताब कुछ बता रही है। इसी तरह से काल्पनिक पठन प्रिटेंड रीडिंग एक इमरजेंट लिटरेसी व्यवहार है बच्चे इस किताब से गंभीरता से जुड़ते है हमें इस व्यवहार को बढ़ावा देना चाहिए। इससे बच्चों में शब्द व शब्दों के बीच की जगह, चित्र व शब्द के संबंध का अहसास विकसित होता है इस तरह से ये व्यवहार धीरे से पढ़ने के कौशल में तब्दील हो जाता है। बच्चा किताब देखते रहने उसे बड़ों के साथ बैठकर उलटने पलटने के दौरान यह जानकारी हासिल कर लेता है कि- किताब के सामने का हिस्सा होता है उसे खोलने, पकड़ने का तरीका क्या होता है। एक पन्ना पढ़ने के बाद उसे पलटना, प्रिंट में संदेश छुपा होता है। लिपि की दिशा होती है। हर शब्द के बीच खाली स्थान होता है और शब्दों से वाक्य बनते है। इस तरह की समझ या व्यवहार बच्चों में प्रिंट की अवधारणा को विकसित करते है।
इमरजेंट लिटरेसी-
बच्चे इमरजेंट लिटरेसी का व्यवहार स्कूल जाने से पहले ही करने लगते है जैसे- छपी हुई लिपि को टटोलना, घसीटा लिखकर अपनी बात समझाने की कोशिश करना, पढ़ने का नाटक करना, किताब को इस्तेमाल करने की कोशिश करना इन व्यवहारों को प्रिंट की अवधारणा कहते है किंतु जब इमरजेंट लिटरेसी के व्यवहारों को घरों में ज्यादा प्रोत्साहन नहीं मिलता इस वजह से हमारे कक्षा में आने वाले सभी बच्चों को पढ़ने लिखने में तकलीफ हो सकती है। हमें पालकों की बैठकों के दौरान इन मुद्दों पर बातचीत करनी चाहिए। यदि बच्चे को घर में प्रिंट का माहौल मिलता है तो वे साक्षर संस्कृति से जुड़े हुए होते है पर क्या कक्षा पहली में आने वाले सभी बच्चे साक्षर संस्कृति से जुड़े घरों से आते है?
साक्षर संस्कृति का वातावरण बनाने में शिक्षक की भूमिका -
बतौर शिक्षक हम प्राथमिक कक्षाओं में साक्षर संस्कृति का वातावरण बनाने बच्चों को यह छूट दे कि वह घर की भाषा का उपयोग करें, लोकगीत व कविता जो वो घर से सुना हो सुनाये, समुदाय में प्रचलित कहानियों का प्रयोग करें। बच्चा के घर की भाषा व स्कूल की भाषा में बहुत अंतर होता है। ऐसे में बच्चा बात करने, सवाल पूछने व खुद को अभिव्यक्त करने में असहज महसूस करता है। बोलना और सुनना ही पढ़ने लिखने की नीव होती है। बच्चों को कक्षा में उनकी संस्कृति से जुड़ी ऐसी कहानियां सुनाये जिसमें वे यह अनुमान लगा सके कि आगे क्या होगा? कक्षा में कहानी किताबों को उनकी पहुंच में रखे और बिना किसी दबाव के उन्हे स्वतंत्रता पूर्वक उनका उपयोग करने दे। इस तरह से हम कक्षा में साक्षर संस्कृति का वातावरण बना सकते है। इस पूरी प्रक्रिया में हम केवल अवलोकनकर्ता की भूमिका में रहे। इसके साथ ही जब कक्षा में हम छोटे बच्चों के साथ कहानी सुनाने की गतिविधि करें तो हमें चाहिए कि हम किताब के मुख को दिखाकर चर्चा शुरू करें, किताबों के पन्ने धीरे से पलट, चित्रों को दिखाते चले, शब्दों को उंगली रखकर पढ़े और कहानी का अनुमान लगवाते चले।
मैरी क्ले न्यूजीलैण्ड की प्रसिद्ध शोधकर्ता है उन्होंने अपनी किताब कान्सेप्ट अबाउट प्रिंट में इमरजेंट व्यवहारों के बारे में लिखा है। उन्होंने 24 ऐसे संकल्पनाओं के बारे में लिखा है जिनका इस्तेमाल बच्चे स्कूल जाने के पहले ही पढ़ने व लिखने के लिए करते है। इस तरह से बच्चे यह समझने लगते है कि लिखकर अपनी भावना और सोच को बताया जा सकता है यह बात समझना बच्चों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस तरह से स्पष्ट है कि बोलना सीखने की तरह ही पढ़ने लिखने का प्रयास बच्चे अपने आप ही करने लगते है हमें बस उनके इस प्रयास को प्रोत्साहन देना चाहिए।
प्रसिद्ध भाषाविद चाम्सकी का मानना है कि इंसान में अपने वातावरण में मौजूद किसी भी भाषा को सीखने की क्षमता होती है। मस्तिष्क में किसी भी भाषा को ग्रहण करने की एक युक्ति होती है। इसी तरह से पढ़ने व लिखने की क्षमता भी प्रत्येक इंसान में शुरू से ही होती है। इसे बढ़ावा देने पर या वातावरण तैयार करने पर बच्चे इसे आसानी से सीखने लगते है।
वायगोस्की जो एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक है कहते है कि चित्र एक ग्राफिक भाषा है और चित्र बनाना लिखना सीखने का एक चरण है।




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