The Digital Teacher : विज्ञान में अवधारणा की बेहतर समझ के लिए प्रभावशाली गतिविधि है करके सीखना ...

विज्ञान में अवधारणा की बेहतर समझ के लिए प्रभावशाली गतिविधि है करके सीखना ...


शिक्षक साथियों सादर नमस्कार,
आज मैं करके सीखे विज्ञान के आनलाईन कोर्स के अपने अनुभवों को आपसे शेयर करने जा रहा हूं। करके सीखे विज्ञान के इस आनलाइन कोर्स में हैण्ड्स आन तकनीक, गतिविधि के माध्यम से अवधारणा तक पहुंचना, प्रयोग कार्य, प्रयोग कार्य से पहले सीखने के उद्देश्य तय करना, अवलोकन करना, परिकल्पना बनाना, निष्कर्ष निकालना, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अनुभव आदि पर विस्तार पूर्वक बातचीत की गयी है कोर्स से मैंने जैसा सीखा समझा उसे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हू- 
हैण्डस् आन क्या है-
विज्ञान बच्चों में सीखने, प्रयोग करने और तार्किक बनने का कौशल उत्पन्न करता है। विज्ञान ने बाकी विषयों की तरह मनुष्य की तरक्की में एक बड़ा योगदान दिया है। विज्ञान पढ़ाते समय करके सीखना, प्रयोग करना बच्चों को खोजने देना जैसे क्रियाओं पर बल दिया जाता है। हम सभी भी प्रशिक्षणों में, संकुल बैठकों में या अकादमिक चर्चाओं के दौरान हैण्ड्स आन साइंस के बारे में सुनते है। हैण्ड्स आन को हम करके सीखना भी कहते है। हम सबने अनुभव किया है कि जिसे हम करके देखते है उसे ज्यादा गहराई से समझते है। जिस तरह से हम पृथ्वी के पर्यावरण में प्रदूषण फैला रहे है तो एक दिन ऐसी स्थिति आ जायेगी कि हमें चांद पर ही रहना पड़ जायेगा। लेकिन क्या हम चांद पर रहेंगे तो वहां भी दिन और रात होंगी। धरती में दिन और रात तब होता है जब सूर्य के मध्य में चंद्रमा आ जाता है और पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती रहती है पर अब हमें यह खोजना होगा कि क्या चंद्रमा भी अपनी धुरी पर घुमती रहती होगी? हमें चांद का केवल एक हिस्सा ही दिखाई देता है दूसरा हिस्सा कभी नहीं दिखता इसे हम डार्क साइड कहते है। कल्पना करें चांद हमारे धरती से बंधा हुआ है और निरंतर चक्कर लगा रहा है जिसका एक हिस्सा ही हम देख पा रहे है ठीक इसी तरह अंतरिक्ष यान भी हमारे पृथ्वी के चक्कर लगा रहे है। चांद भी अपनी धुरी पर ही घूम रहा है चांद को धरती के चारों ओर एक चक्कर लगाने और अपनी धुरी पर पूरा एक चक्कर घुमने में 28 दिन का ही समय लगता है अर्थात दोनों काम एक साथ 28 दिन में पूरा होता है जिसे सिंक्रोनस मोशन कहा जाता है। चांद की धुरी 1.6 डिग्री टेढ़ी है जबकि धरती की धुरी 23.5 डिग्री टेढ़ी है यही वजह है कि हम इसका केवल एक हिस्सा ही देख पाते है। इस लिहाज से हम कह सकते है कि चंद्रमा धरती का आधा चक्कर 14 दिन में पूरा करती है तो चंद्रमा पर भी दिन और रात होते है मतलब 14 दिन की रात और 14 दिन की दिन चंद्रमा में होता है।
एक पूर्णिमा की रात जब मैं चांद को देखकर यह कल्पना कर रहा था कि क्या होता यदि हमारा घर चांद पर होता। हमने बचपन में यह कहानी भी सुनी है कि चांद पर एक बूढ़ी अम्मा रहती है जो चरखा चलाते रहती है।
इस तरह से हम हैण्ड्स आन पर अपनी समझ पुख्ता करेंगे, अब हम ऐसे दो कक्षाओं के उदाहरण पर बात करेंगे जहां एक कक्षा अ में करके सीखो आधारित विज्ञान शिक्षण कराया जा रहा है। एक कक्षा जहां गुब्बारे देकर वायुदाब की गतिविधि करायी जा रही है इसमें प्रयोग करके बच्चे जान रहे है कि गुब्बारा में हवा भरने के बाद उसे हाथों से दबाने पर उसका आकार बदलता है क्योंकि वायु स्थान घेरती है और दबाये जाने पर पिचकती है। इधर एक अन्य कक्षा ब में इसे पालीथीन की थैली, स्ट्रा मंगाकर पालीथीन के उपर किताबें रखकर उसमें स्ट्रा के माध्यम से हवा भरा गया जिससे किताबे उपर उठती है। इस तरह से दोनों कक्षाओं में करके सीखों आधारित गतिविधि हो रही है किंतु कक्षा ब में अवधारणा ज्यादा तय है क्योंकि बच्चे उसे करके सीख रहे है और अवधारणा तक स्वयं पहुंच रहे है। हैण्ड्स आन की गतिविधि से तात्पर्य कक्षा में बच्चों से ऐसे प्रयोग के साथ अध्यापन कराना है जिससे बच्चों में अवधारणा स्पष्ट हो सके। इसमें हम शिक्षकों को अवधारणा को पहले से बताने की जरूरत नहीं होती बल्कि विद्यार्थी गतिविधि करके उस अवधारणा तक स्वयं पहुंचते है। हम किसी अवधारणा को तब बेहतर समझ पाते है जब उससे जुड़ी कोई गतिविधि करते है। किंतु क्या हम यह तय कर पाते है कि बच्चे इस गतिविधि से अवधारणा तक पहुंच पाते है। बच्चे तब ज्यादा सीखते है जब वे अपने आसपास की चीजों का अवलोकन करते है अपने अवधारणा के अवलोकन करने की योजना बनाते है और गतिविधि करके अवधारणा से जुड़ी अपनी समझ बनाते है। बच्चों में अपने विज्ञान के प्रति तभी समझ बनने लगती है जब वे यह समझ बनाने लगते है कि वे अपनी दुनिया के बारे में सीख सकते है। अपने अनुभवों के माध्यम से अपने आसपास हो रही घटनाओं को अपने शब्दों में समझा सकते है। जिस तरह से तैरने के लिए पानी में जाना जरूरी होता है उसी तरह विज्ञान सीखने के लिए उसे करके सीखना जरूरी होता है इसे महज किताब से पढ़कर समझना पर्याप्त नहीं होगा आमतौर पर हमारी कक्षाओं में इसे सिद्धांतों तक ही सीमित कर दिया जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि हम विज्ञान को प्रयोगशाला में ही सीखा सकते है बल्कि हम अपने परिवेश में आसानी से उपलब्ध होने वाली वस्तुओं के जरिये भी बहुत सी अवधारणाओं को सीखाने में उनकी मदद कर सकते है। एक मोमबत्ती और एक कांच की गिलास जो कि आसानी से उपलब्ध हो जाती है दहन की अवधारणा को समझाया जा सकता है कि आक्सीजन के बिना दहन संभव नहीं। इस तरह के कई अवधारणा जो हमारे विज्ञान पाठ्यक्रम का हिस्सा है।
एनसीईआरटी के टीचिंग आफ साइंस के पोजीशन पेपर के अनुसार- उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चे ज्यादा से ज्यादा जितने प्रयोग करें, उतना ही विज्ञान की अवधारणा समझना आसान और प्रभावशाली होता है। उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों को परिचित अनुभवों की मदद से विज्ञान के सरल सिद्धांतों को सीखने के लिए लगे रहना चाहिए ऐसे प्रयोग या गतिविधियां कक्षा का हिस्सा होना चाहिए।
आइये अब हम प्रयोग कार्य को और गहराई से समझने का प्रयास करते है। प्रयोग का आयोजन करना उसके निष्कर्षाें को रिकार्ड करना विज्ञान की शिक्षा में प्रयोग कार्य के रूप में माना जाता है। प्रयोग कार्य से बच्चों में विज्ञान के प्रति रूचि और जिज्ञासा को बढ़ावा मिलता है यह बच्चों में कई तरह से कौशलों को विकसित करने में मदद भी करता है। अच्छे स्तर के प्रयोग कार्य बच्चों के वैज्ञानिक स्तर को मजबूत करता है। हर प्रयोग कार्य के पहले हमें सीखने के उद्देश्य भी तय करने होते है कि किसी भी प्रयोग कार्य के बाद बच्चों को क्या-क्या समझ में आ जाना चाहिए। प्रयोग कार्य तभी सफल माना जायेगा जब बच्चे उससे सीखे हुए अवधारणा को अपने दैनिक जीवन में प्रयोग कर पाये। इसे हम सीखने के प्रतिफल या लर्निंग आउटकम भी कहते है।
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अनुभव- डायरेक्ट व इनडायरेक्ट एक्सपीरियंस
क्या केवल प्रयोग कार्य को ही विज्ञान में हैण्ड्स आन का अनुभव माना जा सकता है। प्रत्यक्ष अनुभव ऐसी गतिविधियां है जिसमें बच्चों को खुद कुछ करके सीखने का अवसर दिया जाता है जैसे प्रकाश का सीधी रेखा में गमन करने वाला प्रयोग, विद्युत सर्किट बनाकर बल्ब जलाने की गतिविधि आदि। प्रत्यक्ष अनुभव देखने, सुनने, चखने, स्पर्श करने आदि पर आधारित है। जबकि अफ्रिका के जानवरों के बारे में जानने के लिए भारतीय जानवरों के बारे में जानकारी लेना या हमारे पूर्वजों के कंकाल तंत्र को जानने के लिए मानव कंकाल तंत्र का अध्ययन करना अप्रत्यक्ष अनुभव है। इसमें हम दूसरों के प्रत्यक्ष अनुभव का उपयोग करते है। हम दूसरों के अनुभवों से बहुत कुछ सीखते है जैसे पढ़ना, चित्र देखना, भाषण व चर्चाएं सुनना आदि। सौरमंडल या ज्वालामुखी का माडल बनाना अपने आप में एक प्रत्यक्ष अनुभव है लेकिन चूंकि हम सौरमण्डल व ज्वालामुखी का प्रत्यक्ष अनुभव तो नहीं कर सकते ऐसे में माडल के रूप में हम इनका अप्रत्यक्ष अनुभव करते है।
हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक-
हैण्ड्स आन तकनीक से तात्पर्य है कि बच्चे किसी भी अवधारणा के बारे में करके सीखते है। इस तकनीक में बच्चे सक्रिय रूप से गतिविधि का हिस्सा बनते है। पांचवीं कक्षा में संघनन समझाने के लिए कक्षा में प्रयोग करती है। एक कांच के गिलास में सामान्य ताप का पानी डालती है और बच्चों से बातचीत करती है बच्चे बताते है कि गिलास का बाहरी सतह सूखा है और गिलास के आर पार देखा जा सकता है। इसके बाद दूसरे गिलास पर बर्फ के टूकड़े डालकर बच्चों से बातचीत करती है इस बार बच्चों के जवाब अलग होती है। शिक्षिका बताती है कि बर्फ डालने से गिलास के अंदर और बाहर सतह का तापमान कम हो जाता है जिससे बाहर हवा में मौजूद जलवाष्प पानी के बूंदों के रूप में बाहर सतह पर जमा हो जाता है और सतह गीली हो जाती है। किंतु इस प्रयोग के बाद संघनन के कुछ उदाहरण पूछने पर बच्चे जवाब नहीं दे पाते क्योंकि संघनन पर यह गतिविधि पर्याप्त नहीं है। बच्चे अवधारणा के बारे में कुछ करके ही सीखे ऐसा जरूरी नहीं होता है। इसके लिए जरूरी है कि बच्चा अवधारणा से जुड़ी गतिविधि करने के दौरान अपने दिमाग को भी सक्रिय रखे। कक्षा 6 में उष्मा की अवधारणा समझाने के लिए शिक्षिका लोहा, लकड़ी, प्लास्टिक और बर्फ का टूकड़ा कक्षा में लाती है। बर्फ को लोहा, लकड़ी और प्लास्टिक के उपर रखकर यह पूछा गया कि कौन सा बर्फ जल्दी पिघलेगा बच्चों ने अलग-अलग अनुमान लगाया और प्रयोग के बाद स्पष्ट हुआ कि बर्फ पहले लोहे में उसके बाद लकड़ी और प्लास्टिक में पिघलती है। प्रयोग के बाद शिक्षिका अवधारणा पर बात करते हुए बताती है कि लोहा उष्मा का सुचालक है जिससे लोहे की सतह से बर्फ तक उष्मा जल्दी पहुंची और वह जल्दी पिघल गयी जबकि लकड़ी व प्लास्टिक उष्मा के कुचालक है जिससे बर्फ तक गर्मी देर से पहुंची है। यह गतिविधि हैण्ड्स आन माइंड्स आन का उदाहरण है जिसमें हमारी सभी इन्द्रियां सक्रिय रहती है।  
हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक के फायदे-
बच्चे जब स्वयं गतिविधि करके सीखते है तो उनमें कई कौशल विकसित होते है बच्चे इसमें अवलोकन करते है, जानकारी एकत्र करते है, परिकल्पना बनाते है उन्हे जांचते है और निष्कर्ष भी निकालते है। यही फायदे है हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक के, इसे और बेहतर जानने के लिए हम कक्षा 8 में घर्षण के पाठ पर बात करेंगे जहां शिक्षिका ने बच्चों से कंचा को एक बार दरी में और एक बार खाली फर्श में लुढ़काकर प्रयोग करवायें। इस गतिविधि में बच्चों ने स्वयं परिकल्पना बनाया, गतिविधि कर परिकल्पना को जांचा, अवलोकन किया, दोनों स्थिति में कंचा कितना दूर गया दूरी नापकर निष्कर्ष निकाला कि दरी पर अधिक घर्षण है जिससे कंचा कम दूरी तक जाकर रूक गया जबकि फर्श में घर्षण कम है इसलिए कंचा अधिक दूरी तक गया। हैण्ड्स आन माइंड्स आन तकनीक के फायदे यही है कि इसमें संवाद कौशल मजबूत होता है, बच्चे समूह में काम करना सीखते है। शिक्षक प्रभावशाली ढंग से कक्षा अध्यापन करवा पाते है। सीखते समय जितनी ज्यादा इंद्रिया सक्रिय होती है उतना ज्यादा दिमाग सक्रिय होता है और बच्चे पढ़ायी गयी अवधारणा को बेहतर ढंग से समझ पाते है।














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