The Digital Teacher : “रेबीज वन हेल्थ जीरो डेथ“ की थीम पर स्कूली बच्चों के बीच परिचर्चा का आयोजन ...

“रेबीज वन हेल्थ जीरो डेथ“ की थीम पर स्कूली बच्चों के बीच परिचर्चा का आयोजन ...


आज 28 सितंबर 2022 बुधवार को विश्व रैबीज दिवस के अवसर पर जांजगीर-चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक के शासकीय पूर्व माध्य.शाला नवापारा (अमोदा) में रैबीज से बचाव के उपायों पर चर्चा का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रोजेक्टर पर बच्चों को रैबीज से संबंधित आडियों विडियों क्लिप का अवलोकन कराया गया। प्रधान पाठक श्री भानू प्रताप महाराणा के मार्गदर्शन में शिक्षक श्री कन्हैया लाल मरावी व कर्मचारी श्री हेमंत यादव के सहयोग से इस कार्यक्रम में रैबीज का संचरण व रोकथाम के बारे में जानकारी दी गयी। नवाचारी शिक्षक श्री राजेश कुमार सूर्यवंशी ने बताया कि रेबीज एक बीमारी है जो कि रेबीज नामक विषाणु से होते हैं। यह बीमारी कुत्ते, बिल्ली, बंदर आदि जैसे जानवरों के काटने से होता है। यह बीमारी संक्रमित जानवरों से फैलता है। ज्यादातर यह बीमारी मनुष्यों में कुत्ते के काटने व खरोचने से होता है। उन्होंने बचाव के उपायों पर कहा कि हम सबको एक जिम्मेदार पशुपालक के रूप में अपने कुत्ते, बिल्लियों का टीकाकरण सही समय पर कराते रहना चाहिए साथ ही रोगी व्यक्ति नियमित रूप से टीके व चिकित्सक के परामर्श से अन्य दवाओं का सेवन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि टीकाकरण केवल अपने पशुओं के लिए ही लाभदायक नहीं होता बल्कि इससे हम सभी भी सुरक्षित रहते है। उन्होंने कहा कि मुख्यत रैबिज संक्रमित जानवर के लार के द्वारा दूसरे जानवर या मनुष्यों में संचरित होता है। मनुष्यों में पाए जाने वाले रैबिज के मुख्य लक्षण है कटे हुए स्थान पर दर्द व असुविधा, अंगों की शून्यता, शरीर का तापमान बढ़ना आदि है। रैबिज का यह विषाणु मस्तिष्क तक पहुंचकर मस्तिष्क विकृति पैदा करता है।  

रेबीज का परिचय
रेबीज एक बीमारी है जो कि रेबीज नामक विषाणु से होते हैं यह मुख्य उर्प से पशुओं की बीमारी है लेकिन संक्रमित पशुओं द्वारा मनुष्यों में भी हो जाती यह विषाणु संक्रमित पशुओं के लार में रहता है और जब कोई पशु मनुष्य को काट लेता है यह विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह भी बहुत मुमकिन होता है कि संक्रमित लार से किसी की आँख, मुहँ या खुले घाव से संक्रमण होता है।इस बीमारी के लक्षण मनुष्यों में कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक में दिखाई देते हैं। लेकिन साधारणतः मनुष्यों में ये लक्षण 1 से 3 महीनों में दिखाई देते हैं। रेबीज के प्रारंभिक लक्षणों में बदल जाते हैं।जसे आलस्य में पड़ना, निद्रा आना या चिड़चिड़ापन आदि है। अगर व्यक्ति में ये लक्षण प्रकट हो जाते है तो उसका जिंदा रहना मुशिकल हो जाता है। नवाचारी शिक्षक श्री सूर्यवंशी ने कहा कि उपरोक्त बातों में ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि रेबीज बहुत ही महत्वपूर्ण बिमारी है और जहाँ कहीं कोई जंगली या पालतू पशु जो कि रेबीज विषाणु से संक्रमित हो के मनुष्य को काट लेने पर आपे डाक्टर के सलाह अनुसार इलाज करवाना अत्यंत ही अनिवार्य है।

रेबीज बीमारी के मुख्य लक्षण क्या होते हैं?
रेबीज बीमारी के लक्षण संक्रमित पशुओं के काटने के बाद या कुछ दिनों में लक्षण प्रकट होने लगते हैं लेकिन अधिकतर मामलों में रोग के लक्षण प्रकट होने  में कई दिनों से लेकर कई वर्षों तक लग जाते हैं। रेबीज बीमारी का एक खास लक्षण यह है कि जहाँ पर पशु काटते हैं उस जगह की मासपेशियों में सनसनाहट की भावना पैदा हो जाती है। विषाणु के रोगों के शरीर में पहुँचने के बाद विषाणु नसों द्वारा मष्तिक में पहुँच जाते हैं और निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे- दर्द होना, थकावट महसूस करना, सिरदर्द होना, बुखार आना, मांसपेशियों में जकड़न होना, घूमना-फिरना ज्यादा हो जाता है, चिड़चिड़ा होना था उग्र स्वाभाव होना, व्याकुल होना, अजोबों-गरीबांे विचार आना, कमजोरी होना तथा लकवा हो जाना, लार व आंसुओं  का बनना ज्यादा हो जाता है, तेज रौशनी, आवाज से चिड़न होने लगते हैं, बोलने में बड़ी तकलीफ होती है, अचानक आक्रमण का धावा बोलना।
इसी तरह से जब संक्रमण बहुत अधिक हो जाता है और नसों तक पहुँच जाता है तो निम्न लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं जैसे- सभी चीजों/वस्तुएं आदि दो दिखाई देने लगती हैं, मुंह की मांसपेशियों को घुमाने में परेशानी होने लगती है, शरीर मध्यभाग या उदर को वक्षरूस्थल से अलग निकाली पेशी का घुमान विचित्र प्रकार का होने लगता है, लार ज्यादा बनने लगी है और मुंह में झाग बनने लगते हैं, क्या 

क्या पशुओं से रेबीज का संचरण मनुष्यों में हो सकता है?
हाँ, बहुत सारे पशु ऐसे होते हैं जिनसे रेबीज मनुष्यों में फैल सकता है। जगंली जानवर रेबीज विषाणु को फैलाने का कार्य अधिक करते हैं जैसे-  चमगादड़, लोमड़ी आदि। हालांकि पालतू पशु जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस और दुसरे पशु भी रेबीज को लोगों में फैलाते हैं। साधारण तौर पर देखा गया है जब रेबीज से संक्रमित कोई पशु किसी मनुष्य को काटता है तो रेबीज लोगों में फैल जाता है। बहुत से पशु जैसे कुत्ता, बिल्ली, घोड़े आदि को रेबीज का टीकाकरण किया जाता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को इन पशुओं द्वारा काट लिया जाए तो चिकित्सक से परामर्श लेना जरुरी है। अपने गाँव, कस्बे या शहर से बाहर जाते हैं तो खासकर कुत्तों से सावधान रहें, क्योंकि करीब 20 हजार लोग रेबीज वाले कुत्ते के काटने से हमारे देश में प्रतिवर्ष मरते हैं।

रेबीज का उपचार कैसे किया जाता है?
इस बीमारी के लक्षण मनुष्यों में कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक में दिखाई देते हैं। लेकिन साधारणतः मनुष्यों में ये लक्षण 1 से 3 महीनों में दिखाई देते हैं। रेबीज के प्रारंभिक लक्षणों में बदल जाते हैं। जिस जगह कुत्ते ने काटा है, उसे पानी की तेज धार से कई बार धोये, ऐसा करने से बैक्टीरिया और कीटाणु साफ हो जाते हैं। अगर घर पर एंटीबैक्टीरियल साबुन हो तो उसका प्रयोग भी प्रभावित हिस्से को साफ करने के लिए करें। पिसी हुई लाल मिर्च को उस जगह पर लगाएं, जहां कुत्ते ने काटा है। रेबीज को टीकाकरण द्वारा हम उपचार भी कर सकते हैं और इसकी रोकथाम भी की जा सकती है। रेबीज का टीका किल्ड रेबीज विषाणु द्वारा तैयार किया जाता है। फ्रांसीसी माइक्रो बायोलाजिस्ट डा. लुई पाश्चर ने 6 जुलाई 1885 में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली वायरस जनित बीमारियों के लिए दुनिया का पहला टीका (रेबीज) विकसित किया था। टीका विकसित करने में उनके योगदान के लिए उन्हें फादर अफ माइक्रोबायोलाजी भी कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान के लिए उन्होंने रोगाणु सिद्धांत को विकसित करने, पाश्चुराइजेशन की प्रक्रिया (जो खाद्य उत्पादों को खराब होने से रोकता है) और वैज्ञानिकों द्वारा टीके बनाने के नवीन तरीके विकसित करने के लिए जाने जाते हैं।





































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