The Digital Teacher : राष्ट्रीय युवा दिवस पर डिजिटल विद्यालय में विवेकानंद जयंती वर्चुअल समारोह का आयोजन ...

राष्ट्रीय युवा दिवस पर डिजिटल विद्यालय में विवेकानंद जयंती वर्चुअल समारोह का आयोजन ...


सरकारी डिजिटल विद्यालय पूर्व माध्य.शाला नवापारा वि.ख. नवागढ़, जिला-जांजगीर-चांपा द्वारा आज 12 जनवरी 2022 बुधवार को स्वामी विवेकानंद जयंती मनाई गई। जूम एप्प पर वर्चुअल मोड में संपन्न हुए इस जयंती कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थियों व शिक्षकों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर स्वामी जी के छाया चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम के संयोजक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने स्वामी जी के जीवन पर सारगर्भित उद्बोधन करते हुए बताया कि युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था और आज उनकी जयंती समारोह है। विद्यालय में प्रतिवर्ष यह आयोजन धूमधाम से मनाया जाता है किंतु कोरोना संक्रमण काल के कारण यह आयोजन वर्चुअल मोड में आहूत किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में सहायक विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी नवागढ़ राजीव नयन शर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों तक बिखेरने वाले साहित्य दर्शन और इतिहास के प्रखंड विद्वान स्वामी विवेकानंद ही थे। स्वामी जी ने कहा था कि उठो जागो और तब तक रुको नहीं जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए। उन्होंने कहा कि स्वामी एक अद्भुत विचारक थे। उन्होंने पूरे विश्व को आध्यात्मिक का संदेश देने वाले महान युग प्रवर्तक एवं युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे। वे अमेरिका के शिकागो में भाषण देने वाले पहले महान व्यक्ति थे। कार्यक्रम में छात्र सारांश सूर्यवंशी ने स्वामी जी की वेशभूषा धारण कर सबको अभिभूत किया। आयोजन में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों तथा नवागढ़ ब्लाक के शिक्षकों ने जुड़कर स्वामी जी के जीवन पर आधारित अपनी बात रखी।  




                               कार्यक्रम के संयोजक नवाचारी शिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने स्वामी जी के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा  कि विवेकानंद वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।  

                                कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में जन्मे विवेकानन्द आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानन्द ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। विवेकानन्द ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धान्तों का प्रसार किया। भारत में विवेकानन्द को एक देशभक्त सन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

क्या है स्वामी विवेकानन्द जी का शिक्षा दर्शन 
स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या बढ़ाना था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को निषेधात्मक शिक्षा की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ? स्वामी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे, वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है, इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है, जो उसके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो। स्वामी शिक्षा द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों जीवन के लिए तैयार करना चाहते हैं। लौकिक दृष्टि से शिक्षा के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने। पारलौकिक दृष्टि से उन्होंने कहा है कि शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के प्रमुख बिंदू- 
 
1 शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
2 शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।
3 बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
4 धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
5 पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
6 शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।
7 शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
8 सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।
9 देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
10 मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।
11 शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ती दे।
 
  
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन-

1 उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
2 एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
3 पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
4 एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
5 खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
6 सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
7 बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
8 विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
9 शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
10 जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
11 जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है दृ शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
12 चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
13 हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।




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