The Digital Teacher : विद्यार्थियों में देशभक्ति का जज्बा जगाने स्कूल में कारगिल विजय दिवस का आयोजन

विद्यार्थियों में देशभक्ति का जज्बा जगाने स्कूल में कारगिल विजय दिवस का आयोजन





आज 26 जुलाई 2019 शुक्रवार को जांजगीर-चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक अंतर्गत शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय नवापारा (अमोदा) के डिजिटल कक्ष में कारगिल विजय दिवस के 20 वर्ष पूर्ण होने पर विद्यार्थियों व शिक्षकों ने मिलकर शहीदों को नमन किया। इस मौके पर वीर शहीदों की याद में कारगिल युद्ध पर आधारित चलचित्र का प्रदर्शन कर विद्यार्थियों में देशभक्ति की भावना जागृत कर देश व समाजसेवा के प्रति सदैव समर्पित रहने की बात कही गयी। इस दौरान समुदाय के लोग व आसपास के स्कूलों से शिक्षक भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के पूर्व सभी विद्यार्थियों ने दो मिनट का मौन धारण कर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिसके बाद कारगिल युद्ध पर आधारित ज्ञानवर्धक चलचित्र का प्रदर्शन कर चर्चा की गयी। कार्यक्रम के संयोजक शिक्षक राजेश कुमार सूर्यवंशी ने बताया कि कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को उन शहीदों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहूति दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। यह युद्ध 60 दिनों से भी ज्यादा चला था और अंतिम दिवस 26 जुलाई 199 को भारतीय सेना ने जीत प्राप्त किया था। यह दिन कारगिल सेक्टर और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में मनाया जाता है। साथ ही भारत के प्रधानमंत्री हर साल इस दिन इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के साथ सैनिकों को श्रद्धांजलि देते है। सशस्त्र बलों के स्मरण के लिए पूरे देश में इस दिन को सम्मान के साथ उन्हें याद किया जाता है। यह एक अनोखी लड़ाई थी जो दुश्मन के साथ तो थी ही साथ ही मौसम, जलवायु और विषम परिस्थितियों से भी जवानों को लड़ना पड़ा। यहां जवानों ने 14000 से लेकर 18000 फीट तक ऊंचाई पर जाकर जहां आक्सीजन की कमी के कारण सांस लेना भी मुश्किल था वहां दुश्मन के छक्के छुड़ाए थे ऐसे में हम सबका यह कर्तव्य बनता है कि उन वीर शहीदों को नमन करते हुए उनकी बहादुरी की गाथा सुने। कारगिल दिवस को प्रधान पाठक श्री कन्हैया लाल मरावी, उच्च वर्ग शिक्षक श्री संतोष श्रीवास व श्री हीरालाल कर्ष ने संबोधित करते हुए बच्चों को देश व समाज की सेवा के प्रति सदैव समर्पित रहने की बात कही। शिक्षकों ने अपने संबोधन में कहा कि वर्ष 1999 में हुए इस युद्ध में भारत ने पाक को ऐसा सबक सिखाया था कि उसके बाद वो फिर यह दुस्साहस नहीं कर सका। यह हम सब देशवासियों के लिए गौरव व देशप्रेम को बढ़ावा देने वाली घटना है जिसे हम सबको जानने व समझने की जरूरत है। इस अवसर पर सफाई कर्मचारी श्री साधराम यादव, बाल कैबिनेट के सदस्यगण, शाला प्रबंधन एवं विकास समिति के सदस्यगण व समुदाय के लोग उपस्थित रहे। 

                    कारगिल युद्ध का इतिहास 
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, दो पड़ोसियों की सेनाओं में प्रत्यक्ष सशस्त्र से संघर्ष लम्बी अवधि तक हुआ। सियाचिन ग्लेशियर को नियंत्रित करने के लिए दोनों देशों के प्रयासों के बावजूद आसपास के पहाड़ों पर सैन्य चौकियों की स्थापना की गई। 1980 के दशक में होने वाली सैन्य झगड़े, 1990 के दौरान, कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों के कारण बढ़ते हुए तनाव और संघर्ष में जिनमें से कुछ को पाकिस्तान द्वारा समर्थित किया गया था और साथ ही 1998 में दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षणों का संचालन किया गया, एक तनावपूर्ण माहौल बन गया। स्थिति को कम करने के प्रयास में दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए और कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय समाधान प्रदान करने का वादा किया। भारतीय सेना को कारगिल के युद्ध में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तानी सैनिक ऊंची पहाड़ियों पर बैठे थे और हमारे सैनिकों को गहरी खाई में रहकर उनसे मुकाबला करना था। भारतीय जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुंचना पड़ रहा था जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था। भारतीय वायुसेना ने कारगिल युद्ध में बड़ा योगदान दिया था। भारतीय वायुसेना ने 32 हजार फीट की ऊंचाई से एयर पावर का उपयोग किया था। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का भी इस्तेमाल किया और जहां भी पाकिस्तान ने कब्जा किया था वहां बम गिराए गए। साथ ही पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया गया था।

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